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उचित विवेक अवश्य उपयोग लेना.
आर्या छंद. 'उपसम विवेक संवर, भासा समिइ छज्जीव करुणाया धम्पियजण संसगो, करणदमो चरण परिणामो. ७
इकाशवाँ-उपशम भाव अप२५ आदरना यानि क्रोधादि कपाय.छोडदेनेही योग्य है. नम्रता आदरकर अहंकार दोष छोड देना, और संतोषगुण सेवन करके लोभ दोषको त्याग देना. क्रोधादिक कषायसे संतप्त हुवा आता चीलाती पुत्रकी तरह उपशमनीरसे शांत होता है.
बाइशयाँ-विवक गुण जरुर धारण करना चाहियें. सच्चे झूठेका, भक्ष्याभक्षका हिताहितका, उचितानुपितका और गुणदोषका जिस मारफत पूरेपूरा जानपना होवै उसीका नाम विवेक है. विचेकीजन हंसके ममान और अविवेकी कन्यकी समान गिने जाते है. विवेकवत चिंतामणि रत्न जैसे अमूल्य धर्मको पाकर संमाल
सकते हैं, और अविवेकी उससे कमनसीवही रहते हैं. विवेक- शून्यको पशुतुल्य कहा है.
तेइशयाँ-संवरण आश्रवके निरोध-किनेसे ही आता है आश्रय यानि नये कर्मकों आजानेका रस्ता, पांचो इंद्रियोंका परवश होना, चारों कषायका सेवन करना, अविरतित रहना, शति होनेपरमी व्रत पचखाण नही करना, मन वचन - तनकों बुरे ( योग उपयोग में लेना, और वैसी ही दूसरी अहितकारी क्रियाओं