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प्राणांत तक करनी ये कुछ कम दुष्कर काम नहीं है ! क्यों कि यथार्थ पस्तुका स्वरूप जाहिरमें लानेसें अपने दोष स्वाभाविक रीतिसें सहृदय श्रोताजनोंकों खुली तरह से समझने में आ जाते हैं; तथापि दुर्धर मानका मर्दन करे जैसी विशुद्ध ५रुपणा करनी वो कुछ सहजकी बात नहीं है. इसका नाम संविज्ञ पक्षी पन कहाजता है. उसको धारन करनहारा वर्ग शुद्ध संविज्ञ ( यति) धर्मकों सेवने हारे शुद्धाशयोंके बहुत रागी होता है. शास्त्रकारोंने मोक्षके तीन मार्ग बतलाये है. उनमें पहिला शुद्ध यति मार्ग, दूसरा शुद्ध श्रावक मार्ग, और तीसरा संविज्ञ पक्षी मार्ग है. उपर बताया गया मृपापादसें वै तीन मार्ग वाले अत्यंत डरे हुवे होते हैं. अपन सबके हृदयमें वो पवित्र सत्यव्रत हमेशा के लिये निवास करो ! और महादुष्ट मृपावाद नामक महादोष अपनेसें कुल मजहबीसें निरंतर अलग रहो!
(३) तीसरा अदत्तादान अदत्त यानि न दिया हुवा और आदान यानि लेना मतलबमें बुरे इरादेसें पराइ चीजको ७०। लेना-छुपा देना-गुम कर देना वो तीसरा पाप स्थानक गिनाया जाता है. खुद जातसें चोरी करनी, चोरी करनहारेको मदद देनी या चोराउ चीज खरीद लेनी-संग्रह रखनी, या झूठे तोल मापस लेनी देनी, पस्तुमें हलकी वस्तु मिलाकर दूसरोंको ठग लेना, विश्वासघात करना, जगात चोरी करनी वगैरः इन पाप स्थानक भेद है. चोरीका माल जमाः कभी रहने नहीं पाता है, चोर शांतियु कभी