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________________ - १२९ सावुव्रत अंगिकार किये परभी कदाग्रह द्वारा जो जैसा - पक्ष असत्य बोलते हैं-प्ररूपतें हैं उनकों महा मृषावादी भ्रष्टाचारी समझने चाहियें. असत्य बोलनेसें बहुत औगुन हैं, और सत्य - हित और मित भाषण करने में बहुत गुण है. तोभी वसुराजाके जैसे कितनेक मूढ जीव झूठी दाक्षिण्यतामें लुब्ध होकर मिथ्या लोक प्रवाસને हमें वहन हो, अपने आत्माको भारी जोखममें उतार देते है. तथा कितनेक महामतिमूढ मनुष्य तो फक्त मिथ्या मानके मारे अपना कथन सच्ची कर दिखलानेकी खातिर झूठी वाग्जाल रचिकेँ आपही महाकष्टमें उतर जाते है; इतनाही नहीं मगर दूसरे मुग्ध मृग जैसे भोले भाले जनोकों वागाडंवरसें भ्रमित करके महा संक्लेशर्म झुका देते है. कोई विरले नररत्नही तटस्थ वृत्ति धारनकर श्रीवीतराग सर्वज्ञवचनानुसार चलकर अपना हित संभाल सकते हैं. वैसा दुर्धर सत्यत्रतको धारन करनेवाले सत्यवंत नरोंके जि'सने स्तुति वचन कहैं या प्रशंसा करें उतनेही बस नहीं है. वे उतम आशयवंत श्री कालिकाचार्य महाराजकी तरह कुल जगह यशबाद पाते है. देवगणभी उन्होंकी उत्सूकता पूर्वक सेवा बजाते हैं, સ્થાવત્ यावत् अनंत सुख संपत्तिकों स्वाधीन करते है. जो महाशय माजांत तकभी झूठ नहीं बोलते हैं, यानि सत्यमार्ग नहीं छोड़ते हैं चै अंतमें अवश्य अक्षय सुख पाते है. दुर्धर सत्य व्रत धारन करનેજો પાનાવાજે સદ્ આશયોને ઉપદેશમાાવનાનેા૨ે શ્રી धर्मदासगणी महाराजने उपदेशमालाकी अंदर निम्न लिखी -३ गाथा रहस्य के साथ याद रखनी दुरस्त है: T ง
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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