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१२६ हुवे पर भी प्रत्यक्ष महा घोर पापकर्मके, करनेवाले भी मालुम होने हैं. और नाम मात्रसें नीच जाति वर्णवाले गिनाये जाते हुवे परभी प्रत्यक्ष रीतिसें अनेक सद्गुणद्वारा उच्च अधिकारको प्राप्त हुवे भये मालुम होते हैं. जैसे प्रसंगपर शास्त्रकारोंके तत्वोपदेश पर खास लक्ष रखनेकी जरुरत है. अन्यथा मतिभ्रमसें वेर वेर स्खलना होनेका संभव है. उपदेश मालादिक शास्त्रकाओनेभी तत्व-धर्मकाही __ अवलंबन करके जाति आदिकी मुख्यता नहीं कही है। वैसे महा
पुरुषोंके वचनका विवेकी पुरुषोंको अवश्य आदर करनाही योग्य है. आप्त वचनसें अपन जान सकते है कि-चांडाल जैसी नीच जातिमें जन्मे हूचे मेतार्य, हरिकेशी आदि पुरुष पवित्र रत्नत्रयीको सम्यग् प्रकारसें आराध कर मोक्षपद साध सके हैं. और सुलस जैसे चांडालके कूलमें पैदा होने पर भी श्रावक व्रतको आराध कर देव गतिको प्राप्त कर सके है, वास्ते तत्त्वविचारसे तो गुणही नियामक है. इसेही नीच कुलकी अंदर पैदा होनेपर भी अनेक सद्गुण शिरोमणि अपने पवित्र आचरण द्वारा जगत् पंच होकर परमपद पाये हैं. और उत्तम कूलमै पैदा होने पर भी अनेक दोषोंका सेवनकर असंख्य मलीन आत्मा अधोगतिको प्राप्त हूवे हैं; वास्ते उत्तम कुलमें पैदा होने मात्रसे मोक्ष कदापि मान लेनेका नहीं हैं. मोक्ष प्राप्तिके योग्य उत्तम गुणोका सेवन करने सही सभी आत्माओंक कल्यान होनेका है, अन्यथा नहीं. औसा समझ करके वैसे उत्तम ' गुण धारन करनेके वास्ते और दोषोंको उन्मूलन करने के वास्ते . ह