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जन्म या लग्नादि प्रसंगपर परम मांगलिक श्री देवगुरुकी पूजा भक्ति भूलकर झूठी धूमधाम रचनेमें लख्खों नहीं वलके करोडों जीवोंका विनाश होवै वैसी आतशबाजी छोडने वगैर: में अपार धनका गैर उपयोग करनेमें आता है, वैसा भवभीरु सज्जनोंकों करना ना दुरस्त है.
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( ४ ) मावापों का उलटा शिक्षण और उल्टा वर्तन:- मावाप, उनके मावापोंकी तर्फसे अच्छा धार्मिक व्यवहारिक वारसा मिलानेमें कमनशीब रहनेसें, किंवा भाग्य योग सें मिल हुवे परभी उनका कुसंग द्वारा विनाश करनेसें अपने वालकोंकों वैसा उमदा वारसा देनेमें भाग्यशाली किस तरह वन सकै ? अगर कभी सत्संगति मिलगइ होवे तो वैसे माबाप भी अपने बाल बच्चोंकों वैसा प्रशंसनीय वारिसनामा करदेनेमें शायद भाग्यशाली बन भी शकै ! क्योंकि -' सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ? यानि कहो भाइ ! उत्तम संगति पुरुषोंकों क्या क्या सत्फल न दे सकती है ? सभी सत्फल दे सकती है !' उत्तम संगति के योगसे प्राणी उत्तमताको प्राप्त करता है, उत्तम बनता है, तो फिर वैसी अमूल्य सत्संगति करनेमें और करके कौनसा कमबख्त उत्तम फल प्राप्तिमें वेनशीब रहेगा ? शास्त्र. के जाननेवाले पंडित लोग कहते है कि-' बुरे में बुरी और बुरेंमें
बुरे फलकी देनेहारी कुसंगतिही है.' तो बुरे फलकों चखनेकी चाहनावाला कौन मंदमति ऐसी कुसंगतिकों कबूल करेगा ?- बस
भगवशात् इतनाही कहकर अब विचार करै कि- अपने बाल
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