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चार चुगलको पकडी बंधाऊ, न्याय अदल वरताॐ दीना. २ अपनो राज अपने वश राखी, परबशपन न रहाॐ रूपचंद कहे नाथकृपासें, अब में नाथ कहाडं.
दीना. ३
( पद तेरहवाँ. ) प्रभु भज लै मेरा दिलराजी, प्रभु भज लै. आठ पहेरकी चोसठ घरियां, दो घरियां जिन साजी; प्रभु. १ दान पुण्य ऋछु धरम करी है, मोह मायाकों त्याजी. प्रभु. आनंदघन कहे समझ समझरे, आखिर खोयगा बाजी. प्रभु. ३ अपने और पराये हित के वास्ते पापी प्रमादपंचक के फंदमें फंसानेसें वचनेके लिये जो कुछ लिखा गया है उनकों लक्षमें ले कर राजहंसकी तरह सार सार ग्रहण करकें सज्जन स्वपर श्रेय साध कर अमूल्य मानवदेह सार्थक करेंगे तो कर्पूर समान उज्वल महायश प्राप्त करके अंत में अवश्य अक्षयसुखके स्वामी होवेंगे.
ce+2= ७
सामान्य हितशिक्षा.
( १ ) जयणा यतना, वो वो धर्म संबंधी या व्यवहार संबंधी, परलोक वास्ते या इस लोक वास्ते, परमार्थसें या पार्थसें जो जो व्यापार करने में आवें उनमें बराबर उपयोग रखना वो उसका सामान्य अर्थ हैं. विशेषार्थ विचारनेसें तो, आत्माका शुद्ध निर्देभ मोक्षार्थ शांतिपूर्वक करनेमे आये हुवे मन-वचन-तन द्वारा व्यापार