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हुए हैं, जिन्होंने विघ्नविनाशक गणेशजी की लोक- प्रसिद्धि के कारण अपनी रचनाओं के मंगलाचरण में श्री गणेशजी को नमस्कार और उनका स्मरण किया है । ऐसे कुछ कवियों के मंगलाचरण के श्री गणेश सम्वन्धी पद्य नीचे सद्धृत किये जा रहे हैं जिससे श्वेताम्वर कवियों की उदार भावना और समन्वयवृत्ति का परिचय मिल जाता है ।
१ - सं० १५६५ में उदयभानुरचित 'विक्रमसेन रास' के प्रारम्भ में......
शंभु शक्ति मनिधरी, करिस कवि नव नवइ छंहि । सिद्धि बुद्धिवर विधनहर, गुण निधान गणपति प्रसादि ॥
२ - सं० १५७५ में मृतकलशरचित 'हमारे प्रवन्ध' के प्रारम्भ #...
गवरीपुत्र गजवदन विशाल, सिद्धि बुद्धिवर वचन रसाल । सुर-नर- किंनर सारइ सेव, घुरि प्रणम् लम्बोदर देव ॥ ३ - सं० १६६५ कवि हेमरत्नरचित 'गोरा वादल चोपाई' के प्रारम्भ में...
सकल सुखदायक सदा सिद्धि बुद्धि सहित गणेश । विघन विडारणरिध करण, पहिली तुझ प्रण मेश ॥
४- सं १७७२ मेंदन पति विजयरचित 'सुन्माण रासो' के प्रथम
में......
शिव सुत सुं ढालो सजल, सेवे सकल सुरेश ।
विन विडारण वरदीयण, गवरी - पुत्र गणेश ॥
५- सं० १७७६ में केशर कविरचित 'चंदनमलियागिरी' चो०, के