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( ७० } उपासनादि नित्य कर्म करना, भोजन करते समय हाथ-मुख धोकर बैठना, भोजन के पूर्व और अन्त में कुल्ला करना, वैठकर भोजन करना, वे सब बातें जैनों में भी विद्धमान हैं । वस्त्र, आभूषण, खान-पान व वैवाहिक संस्कार, पूजा-पाठ की विधियां, परिवार तथा परिवार के बाहर के व्यक्तियों से अभिवादन, आदि के सभी नियम तथा उनके मूलभूत लक्षण हिन्दुओं और जैनियों में हमेशा से समान रहे हैं ।
भारत में जैन धर्म कोई नया मार्ग नहीं है । हिन्दू संस्कृति के प्रतीक स्वरूप वहुत सी समानता इसमें देखी जा सकती हैं ।
पुष्प प्रतीक : -- कमल को पुष्पों में सर्वोपरि माना गया है । जैन धर्म आगमों में कमल पुष्प की कई स्थानों पर उपमा दी गई है । कहीं-कहीं मन्दिरों में जैन मूर्तियों का आसन कमल पर ही दिखाया गया है । मन्दिरों के शिखर पर कलश लगाने के पूर्व कमल पुष्प का आकार बनाया जाता है |
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शस्त्र प्रतीक : - भारतीय शस्त्रों में तलवार, कटार का भी अपना प्रमुख स्थान है । जैनों के दुल्हे (वींद) जब व्याहने जाते हैं तो हर समय शरीर पर लटकाए रहते हैं और वधू पक्ष के द्वार पर पहुँचकर तो रन मारने का दश्तूर तलवार से ही करते हैं । वैसे दशहरे पर शस्त्रों की पूजा भी की जाती है । छड़ी भी एक प्रकार का शस्त्र ही है, जिसे कुछ जैन साधु हाथ में रखते हैं । चांदी की छड़ी का उपयोग भी धार्मिक जलूस के साथ किया जाता है ।
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वाद्य प्रतीक : - वाद्यों की ध्वनि (सुर) को मंगल सूचक माना जाता है । जैनों के प्रत्येक धार्मिक तथा सामाजिक कार्यों में वाद्यों को मान्यता तो प्रदान की ही गई है, मन्दिरों में भी घन्टा, झांजें, हारमोनियम, ढोल आदि वाद्यों का उपयोग किया