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हुए हैं । एक उपासना काण्ड के अतिरिक्त जैनों के सारे. रीतिरिवाज, जीवन-मरण, शादी-विवाह, हिन्दू विधि विधानों के अनुसार ही होते हैं । ये लोग भी आदि अनादि कालों से भारतीय ही हैं।'
भारतवर्ष जैनों की जन्म-भूमि है । जन्म-भूमि को स्वर्ग से भी अधिक मान्यता की जाती है। चक्रवर्ती भरत के नाम से इस देश का भारत नामकरण हुआ है । जैन परम्परा में सर्वप्रथम आता है । वैदिक परम्परा में वे आठवें अवतार भगवान् ऋषभदेव के पुत्र थे। ऐसी दोनों ही परम्पराओं की मान्यता है । पुराण साहित्य में तो इस विषय के अनेक प्रमाण मिलते हैं, जिनमें ऋषभ देव पुत्र भरत के नाम से ही इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
इसमें सन्हेह नहीं कि न केवल भारतीय दर्शन के विकास का अनुगमन करने के लिए अपितु भारतीय संस्कृति के स्वरूप के उत्तरात्तर विकास को समझने के लिये भी जैन दर्शन का अत्यन्त महत्व है । भारतीय विचारधारा में अहिंसावाद के रूप में अथवा परमत सहिष्णुता के रूप अथवा समन्वयात्मक भावना के रूप में जैन-दर्शन और जैन विचारधारा की देन जो है उसको समझे बिना वास्तव में भारतीय संस्कृति के विकास को नहीं समझा जा सकता ।
उपाध्याय अमर मुनि ने लिखा है कि वस्तु सत्य के सम्पूर्ण स्वरूप को न हम एक साथ पूर्ण रूप से देख सकते हैं न व्यक्त १-अग्नि परीक्षा-एक समीक्षात्मक अध्ययन (संकलन) पृष्ठ ७ । २-राष्ट्र धर्म मासिक : डा० मंगलदेव शास्त्री, डी० पी०
प्रांक्सन पृ० ३३.