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तब तक डाकुओं के आतंक से असुरक्षित हो गया था और एक नया अध्याय शुरू हुआ- श्री मेहता का तथा शहर था गंजबासौदा..
जीवन की असुरक्षा से चिन्तित होकर लौटे श्री मेहता ने इस नये क्षेत्र में ३ वर्षों तक किसी भी वाह्य गतिविधियों का सूत्रपात नहीं किया । पूरी तरह यहां व्यवस्थित होने के उपरान्त इन्होंने विविध व्यापार क्षेत्रों, अनाज एवं दाल मील आदि में अपना विशेष स्थान बनाया और इनके यहां आगमन तथा विकास के सूत्राधार थे सर्वश्री मान्यवर उदयचन्द जी ओसवाल (कंबर सा०), अपनी उदार एवं मानवतावादी प्रवृत्तियों के लिये विख्यात रतनचन्द जी प्रोसवाल (मिट जी) तथा मदनसिंह जी एडवोकेट जिन्होंने यहां श्री मेहता की मार्गप्रसारित का सम्पूर्ण दायित्व निर्वाह किया।
बासौदा का तारण तरण समाज, जिसका एक बड़ा ट्रस्ट यहां काफी पहले से शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में प्रसिद्ध था, एक कार्यकर्ता के रूप में पहले से ही श्री मेहता को जानता था और इसी कारण उन्होंने तारण तरण ट्रस्ट में इन्हें १० वर्ष पूर्व ट्रस्टी बनाया।
धार्मिक अभिरुचियों में विशेष सक्रिय श्री मेहता ने १४ जून १६६६ को जैन श्वेताम्बर श्री संघ के तत्वाधान में पाननाथ भगवान की प्रतिष्ठा के महोत्सव का संचालन एक अध्यक्ष के रूप में किया और श्वेताम्बर समाज को संगठित करने की पहल की।
दमके साथ ही प्रारम्भ से रामायण मण्डल में अपना पूर्ण
पूर्ण