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( १७३ ) विधि हिन्दू पद्धति के माफिक ही पूर्ण की जाती हैं ।
जैनों का प्राणान्त होने के बाद उसके शव को मरघट ले जाने के लिए दो लम्बी लकड़ियों पर ५ या ७ छोटी लकड़ियां बांधी जाती हैं, उस पर शव लिटाने के बाद स्त्री पर लाल तथा पुरुष पर सफेद कफन डाला जाता है, शव के आगे-आगे पुत्र या भाई अग्नि का बर्तन लेकर चलता है। (इसी अग्नि से अग्नि संस्कार किया जाता है) यह सब भारतीय परम्परा के मुताविक ही होता
____कोई-कोई जैन खानदानों में मृतक के फूल (जली हुई हड्डियां) गंगा जी में विसर्जन करने जाते हैं, वहां से गंगाजल भी भर कर लाते हैं और गंगाजली खोलने की रस्म भी अदा करते हैं, ब्राह्मण भोजन भी समाज के साथ करवाते हैं तथा ब्राह्मण से पूजन भी करवाते हैं ।
भारतवर्ष में प्राचीन प्रथा के अनुसार मनुष्य के पलंग पर प्राण निकलने को अच्छा नहीं मानते, उसका अन्त पाया समझ उसे उसके कुटुम्बी जन पलंग से उठा कर भूमि पर लिटा देते हैं । यह क्रिया जैन व वैष्णवों में एक-सी ही अपनाई जाती है। मृत्यु के बाद मृतक को नहला कर वस्त्र बदलना, अर्थी सजाना, शव-यात्रा में बाजे बजाना, शमशान से वापसी पर घर के द्वार से अन्दर तव तक प्रवेश नहीं करने दिया जाता, जब तक घर वाले पाकर पानी का छींटा न दे दें।
मृतक की भस्मी (खारी) अग्नि संस्कार के तीन दिन बाद शमशान भूमि से उठा ली जाती है, उसे तीसरा कहते हैं । बाद में दाह-स्थल को गाय के गोबर से लीप कर नमक छिड़कते हैं तथा कुछ खाने की सामग्री, पानी, व्यसन पदार्थ रख दिये जाते हैं।
इसके बाद समाज व मिलने वाले लोग मृतक के घर पहुंच