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जैन व वैष्णव भूतियों की एक
मन्दिर में स्थापना
शिल्प की दृष्टि से भी प्राचीन मन्दिरों में कई वैदिक देवताओं की मतियां एवं उनके विभिन्न प्रतीकात्मक चेष्टाओं से सम्बद्ध चित्र हमें जैन मन्दिरों में प्राप्त होते हैं, जैसे कृष्ण को ही लें।
जैन शिल्प में कृष्ण-अंकन की बहुलता कृष्ण के जैन धर्म में लोकप्रिय होना प्रमाणित करती है। कृष्ण-जीवन से सम्बन्धित विभिन्न घटनाओं के स्वतन्त्र या नेमिनाथ से सम्बद्ध कई शिल्पगत अंकन आज के मध्ययुगीन जैन मन्दिरों में देखे जा सकते हैं।
.११वीं सदी के प्रारम्भ में निर्मित विमलवसही मन्दिर के गर्भगृह नं० १० की छत पर उत्कीर्ण वृत्ताकार घेरे के मध्य जल से भरे तालाब में क्रीड़ा करते कृष्ण उनकी रानियों और नेमिमाथ को 'चित्रित किया गया है। दूसरे घेरे में नेमि को कृष्ण के श्रायुद्धशाला में शंख बजाते हुए उत्कीर्ण किए जाने के साथ ही दोनों के मध्य हुए शक्ति परीक्षण को भी चित्रित किया गया है। तीसरे घेरे में राजा उग्रसैन राजकुमारी राज्यमती और विवाह पंडाल प्रदर्शित है। साथ ही नेमि का विवाह के लिए प्रस्थान, १-मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी : जैन साहित्य और शिल्प में
कृष्ण : कादम्बिनी-अक्टूबर १६७२, पृ० ८२,