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( १३५ ) बनवा कर प्रतिष्ठा की। यह मन्दिर कृष्णगढ़ में आज भी विद्यमान है।
इन्हीं के वंशज जयमल जी फलौदी में हाकिम थे । सं०१६८१ में जालौर शतरूजा, सांचौर, मेड़ता और सिवाना में इन्होंने जैन मन्दिर बनवाये ।
वच्छवतों की जैन धर्म के प्रति आस्था:-बीकानेर में रागड़ी । के चौक में एक जैन उपासरा है जो पहले कभी वच्छावत कुल का राजमहल था ।
वच्छराज जिसके नाम से यह वंश वच्छावत कहलाया, यह मारवाड़ के बोथरों की उत्तम जाति में से था जिनकी रगों में जालौर के भूपनि वीर चौहान कुवर सामंत सिंह का वीर रक्त . बहता था । वच्छराज बड़ा ही प्रेमी और धर्मात्मा, वीरपरुप था,
उसने जैन धर्म की प्रभावना के लिए बहुत कुछ उद्योग किये। ... शत्रुजय की यात्रा भी की। .
___ इन्हीं के वंश में वरसिंह और नागराज, ये दो बड़े प्रसिद्ध वीर थे। उन्होंने जैन साधुओं को गद्दी पर बैठाने के उत्सव 'किए, संघ चलाये और अनेक जैन मन्दिर वनवाये ।
वस्तुपाल, तेजपाल:-ये दोनों सगे भाई थे, जाति के पोरवाड़ थे, लेकिन जैन धर्म के पालने वाले थे । जैन मन्त्रियों और सेनापतियों में वस्तपाल और तेजपाल का नाम सर्वोपरि है । जैन धर्म की प्रभावना के जो कार्य इन्होंने किए हैं, उनमें संसार में इनका नाम अमर हो गया है।
इसी प्रकार जैन और वैष्णव की एकता के प्रति सत्त प्रयत्न करने वाले राजारों में सम्राट -बुक्क. का नाम भी लिया जा सकता है। . ..
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. . सम्राट बुक्क तोराजपि थे । राज पद पर पाते ही उन्होंने