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लेखों के अनुसार सम्प्रति ऐसे विभवशाली थे मानो जैन धर्म के लिए दूसरे अशोक ही थे । भारतवर्ष का शासन १३७ वर्ष तक मौर्यवंश के हाथ में रहा, जिसमें चन्द्रगुप्त, सम्प्रति और वृहद्रथ ये तीन प्रसिद्ध जैन धर्मी राजा हुए।
महामेघवाहन राजा खारवेल:-जैन कुलोत्पन्न 'खारवेल' का परिचय पुराणरत्न पं० गंगाधर सामन्त शर्मा की 'प्राचीन कलिंग' नाम की पुस्तक में लिखा है-कलिग के जैन राजे 'ऐर्य' कहलाते थे । महामेघवाहन इनकी उपाधि होती थी। कलिंग का 'ऐर' वंश के चैत्र राजा द्वारा उद्धार हुआ इसलिए तव से कलिंग देश के ऐर चैत्र वंशीय कहलाने लगे। इस वंश में ६ राजा हो गये
अग्निकुल के पराक्रमी राजा-परमार, चौलुक द सोलंकी और चौहान अग्निकुल के राजपूत समझे जाते हैं । जैन धर्म के तेईसवें तीर्थकर धर्मवीर पार्श्वनाथ के समय में परमार वंशी राजा उत्पल (उपलदे) ने ओसिया पट्टन नगर (जोधपुर के पास) वसाया था, जैनाचार्य के उपदेश से जौनधर्मी हुया, इसके साथ
ही ३६ कुल के (सवा लाख) राजपूतों ने जैन धर्म स्वीकार किया, - सोसिया नगर में जैन धर्म में दीक्षित हुए, इसलिए ये सब राजपूत प्रोसवाल कहलाये, इसी जाति में भामाशाह, आशाशाह, वस्तुपाल और तेजपाल जैसे वीर-चूड़ामणि नररत्न पैदा हुए हैं । ___चालुक्य (सौलकी) जैन राजा.-चालुक्य नरेशों की उत्पत्ति राजपूताने के सोलंकी राजपूतों से कही जाती है । दक्षिण में इस राजवंश की नींव जमाने वाला एक पुलकेशी नाम का सामन्त था। इसके उत्तराधिकारी-कीर्तिवर्मा, मंगलीश, पुलकेशी (द्वितीय) हुए थे, सब जैन धर्म के अनुयायी थे।
महाराजा कुमारपाल जैन:-आपकी राजधानी अनहिलपुरपाटन नगर में थी। हेमचन्द्राचार्य ने महावीर चरित्र में आपकी