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________________ -अध्याय - - - - - - - - अनमान Name बैन दर्शन में अनुमान ज्ञान का साधन है किन्तु यहा अनुमान को स्वतंत्र प्रमाण नहीं माना गया है। चैन प्रत्यक्षा और परीक्षा दो ही प्रमाण मानते हैं। अनुमान को परोक्ष प्रमाणों के अन्तर्गत ही मान लिया गया है। इसका कारण यह है कि यहा' प्रमाणों में प्रत्यक्ष और परोक्ष के मध्य भेद का कारण है स्पष्टता और अस्प-टता का होना । अकालकदेव स्पष्टता की परिभाषा मैं कहते हैं कि अनुमान से, प्रत्यक्ष प्रमाण विशेष प्रतिभा सित होता है अर्थात् अनुमान को परोक्ष प्रमाण में इसलिए शा गिल किया गया है क्योंकि प्रत्यक्षा शान अनुमान से अधिक स्पष्ट है। यपि उमारवाति आगमिक परम्परा का अनुसरण करते हुए अनुमान को आभिनिबोधिक जान कहते हैं और उसे अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष के अन्दर रखते हैं।' कहीं-काही अदालंक भी इसे मानस-प्रत्यक्ष कहते हैं किन्तु सामान्य स्पसे जैन दर्शन में अनुमान को परोक्ष प्रमाण के अन्तर्गत मानते की ही परम्परा है। जैन दार्शनिक प्रत्यक्षा-प्रमाण को अनुमान आदि परोक्ष प्रमाणों से स्पष्टज्ञान का सूचक मानते हुए भी यह मानते हैं कि अनुमान प्रमाण का एक साधन है और प्रत्यक्ष प्रमाण की भाति परोक्षा प्रमाण भी सत्य को जानने में समर्थ हैं। देवसरि का यहां तक कहना है कि यह कहना सत्य नहीं है कि प्रत्यक्षाप्रमाण सत्य मान के लिए परोक्ष-प्रमाण से अविश्वसनीय साधन है। किन्तु साथ में ये इतना अवश्य जोड़ देते हैं कि प्रत्या प्रमाण अनुमान की अपेक्षा अधिक स्पष्ट होता है। फिर ये यह भी कहते हैं कि यदि अनुमान न हो तो प्रत्यक्षाप्रमाण भी संभव नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष मान की वैधता प्रत्ययी कृत पस्तुओं की प्रकृति के साथ अनुकूलता और प्रतिकूलता पर निर्भर करती है और रा अनुपालता और प्रतिकूलता को अनुमान द्वारा ही खोजा जाता है । अनमान का लक्षण: जैन दार्शनिकों ने खेत से साध्य का ज्ञान होना अनुमान का लक्षण माना
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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