SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय प्रस्तुत प्रशस्ति संग्रह पाठकों के समक्ष उपस्थित है। इससे पाठकों को वीर-सेवा-मन्दिर के अनुसंधान कार्य का प्राभाम मिल सकेगा। इस ग्रन्थ में अनुसन्धान से सम्बन्ध रखने वाली सभी सामग्री को प्राकलन करने का प्रयास किया गया है। यद्यपि इस ग्रन्थ के प्रकाशन में अधिक बिलम्ब हो गया है, और उसका कारण प्रेम प्रादि की अव्यवस्था है । ग्रन्थ के नय्यार करने में भी काफी समय और श्रम करना पड़ा है, और यह अनुसन्धत्सुओं के लिये विशेष उपयोगी सिद्ध होगा; क्योंकि इसमें अपभ्रंश भाषा के साहित्य की कृतियों और ग्रन्थकर्ताओं के परिचय तथा ममयादि पर प्रकाश डालने का भरमक प्रयत्न किया गया है । ग्रन्थ की प्रस्तावना पं0 परमानन्द शास्त्री ने बड़े परिश्रम से लिखी और वह प्रमेय बहुल है तथा उपयोगी परिशिष्टों से अलंकृत है। ___ सबसे महत्व की बात यह है कि इस ग्रन्थ का प्राक्कथन डाक्टर श्री वासुदेव जी शरण अग्रवाल हिन्दु विश्व विद्यालय बनारस ने लिखा है, और प्रिफेस (PREFACE) दिल्ली विश्वविद्यालय के रीडर डा० श्री दशरथ शर्मा, डी० लिट् ने अंग्रेजी भाषा में लिखा है । इसमे ग्रन्थ की महत्ता और भी अधिक बढ़ गई है । मैं संस्था की ओर मे उन दोनों ही मान्य विद्वानों का बहुत ही आभारी हूँ। प्राशा है विद्वान, विश्वविद्यालयों, लायबेरियों और कालेजों का पुस्तकालयाध्यक्ष इस ग्रन्थ को मंगाकर उगसे अधिकाधिक लाभ उठाने का प्रयत्न करेंगे। जयभगवान जैन, एडवोकेट मंत्री-वीर-सेवा-मंदिर सोसाइटी २१ दरियागंज, दिल्ली
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy