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________________ १४२ वीरसेवामन्दिर ग्रन्थमाला गण्णहो होंतु पंचकल्लाणह, परमप्पयलीणहो विलय विहीणहो सरमि चरण सि रोय-सोय-खयकरण विहाणई। जिण णण्णहो जसु भुप्रगत्तए विलसउ, जय अणुवम-सिव-सुह करण देव, णण्णहो परिवसुहार पवरिसउ । देविंद फणिंद रिद सेव । सिवभत्ताई मि जिणसण्णासें, जय गाणमहोवहि कलिय पार, बेवि मयाइं दुरिय पिण्णासें । पारा विय सिव पहे भवियसार । बंभणाई कासवारिसि गोत्तई, जय कम्म भुवंगम दमणमंत, गुरुवयणामय पूरिय सोतई। मंताण बीज मण गह कयंत । मुद्धाएवी सवणासई, जय चउ गइ डरिय जणेक्कसरण, महु पियराइं होंतु सुहधामई। रण रहिय सुयण-दुहणिवह-हरण । संपज्जउ जिणभावें लइयहो, जय संयम सरवर रायहंस, रयणत्तय विसुद्धिदंगइ यहो। हंसोवम बुहयण कय पसंस । मझ समाहिबोहि संपज्जउ, जय कोह-हुप्रासण पडर वारि, मझ विमलु केवलु उप्पज्जउ । वारिय-तम केवल णाण धारि । जय सासय संपय हिययवास, पत्ता वासव सय सेविय सुह णिवास । गण्णहो मज्झ वि दयकरउ पुप्फयंत जिणणाह पियारी। जय भविय सरोरुह कमल बंधु, खमउ मसेसु वि दुव्वयणु वसउ वयणे सुयदेवि भडारी ॥१ बंधुर गूण णियरस बहुलसिंधु । भवण वावारभार णिवहण वीर धवलस्स । घत्ताकोंडेल्ल गोत्त णहससहरस्स, पयईए सोमस्स ॥१ जयदेवणिरंजण भव-भय भंजण मंरण भवण महा कुड दब्वा गन्भ समुन्भवस्स, सिरिभरहभट्टतणयस्स । तव चरण णभंत हो मणे सुमरंतहो होइ समिच्छ जस पसरभरियभुमणो यरस्स, जिणचरणकमल भसलस्स ।। फलु ण प्रणवरय रइयवर जिणहरस्स, जिणभवण पूणिरयस्स । मरिण धरि वि सरासह दिव्वदाय, जिण सासणाय मुद्धारणस्स. मुरिण दिण्णदाणस्स ॥३ तह पंडिय मंगल एव पाय। कलिमल कलंकपरिवज्जियस्स, जिय दुविहवइरिणियरसस्स । जण सवण सुहावउ महरुललिउ, कारुणकंदणवजल हरस्स, दीणयण सरणस्स ॥४ कल्लारणय विहिर यणेण कलिड । रिणव लच्छी कीलासरवस्स, वाएसरि णिवासस्स । पुण कहमि पयडु गुण णियर भरिउरिणस्सेसविउस विज्जा विणोय णिरयस्स सुद्ध हिमयस्स ॥५ करकंडणरिदहो तणउ चरिउ । णण्णस्स पप्यणाए कव्वपिसल्लेग पहसिय मुहेण । जइ दुज्जण वंकुड मणि णिरुत्तु, णायकुमार चरितं, रइयं सिरि पुप्फयंतेण ॥६ जइ जरणवउ णीरसु मलिण चित्तु। वायरण ण जाणमि जइ वि छंदु, ११४ करकड चरिउ (करकुड चरित) सुमजलहि तरेश्वई जइ वि मंदु । मुनि कनकामर जइ कह व ण पसरइ ललियवाणि, प्रादिभाग: जइ बुहयण लोयहो तणिय काणि । मण-मारविणासहो सिवपुरिवासहो पाव-तिमिर-हर जह कवियण सेवहु मई ण कीय, दियर हो। जइ जडयण संगई मलिण क्रीय । सहन
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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