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जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह
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बासु तित्यिमई लडउ णाणसमिद्धउ रिणम्मलु
इय महापुराणे तिसट्ठि महा पुरिस गुणालंकरे महाका
सम्मइंसणु ॥१ पुप्फयंत विरइए, महा भब्व भरहाणमणिए महा कन्वे x x x x जिणिद णिव्वाण गमणं णाम दुत्तरसय परिच्छेदाण महापुराणं
इय महापुराणे तिसट्टि पुरिसगुणालंकारे महाकइ सम्मत्तं ॥१०२ पुप्फयंत विरइए महाभव्व भरहाणु मण्णिए महाकन्वे ११२ जसहर चरिउ (यशोधर चरित) सम्मइसमागमो णाम पढयो परिच्छेप्रो समत्तो ॥१
महाकवि पुष्पदंत अन्तिमभागः
आदि भागःसिद्धि विलासिणि मण हर दूएं, मुद्धएवी तणु मंभूएं।
तिहुवणसिरिकंतहो अइसयवंतहो अरहतहो हय
___ वम्मह हो। गिद्धण सधण लोय सम चित्ते,
पणविवि परमेट्ठिहि पविमल दिट्ठिहि चरण जुयल णय सव्वजीव णिक्कारण मित्तें।
सय महहो। सहसलिल परि वढिय सोते, केसव पुत्ते कासव गोत्तें।
कोंडिल्ल गोत्तणह दिणयरासु, विमल सरासय जणिय विलासें,
वल्लह परिंद घर महयरासु । सुण्ण भवरण देवलय णिवासें ।
गण्णहो मंदिरि णिवसंतु संतु, कलि-मल पबल पडल परिचत्तें,
अहिमाणु मेरु कइ पुप्फयंतु। णिग्घरेण रिणप्पुत्त कलतें।
चितइ य हो घण णारौ कहाए, गइ वा वीतलायकयण्हाणे,
पज्जत्त उ कय दुक्किय पहाए। जर चीवर वक्कल परिहाणें।
कह धम्म णिबद्धी का वि कहमि, धीरें धूलिय धूसरियंगें,
कहियाइ जाइ सिव सोक्खु लहमि । दूरय रुज्झिय दुज्जण संगे।
पंचसु पंचसु पंचसु महीसु, महि सय णमलें करि पंगुरणे,
उप्पज्जइ धम्मु दया सहीसु । मग्गिय पंडिय पंडिय मरणें।
धुउ पंचसु दससु विणासु जाइ, मण्ण खेड पुरवरि णिवसन्ते,
कप्पंधिवख इ पुणे पुणु वि होइ । मणि भरहंत धम्बु झायन्ते ।
काला वेक्खइ पढमिल्लु देह, भरह सण्ण रिणज्जे णय णिलएं,
इह धम्मवाइ सिय वसह केउ । कन्व पबंध जणिण जण पुलएं।
पुरुएउ सामि रायाहिराउ, पुप्फयंत कइणा चुय पंके,
प्रणंदिउ च उसुरवर णिकाउ । जइ अहिमाण मेरु णामके।
पत्ताकयउ कव्व भत्ति? परमत्थे, जिण पय पंकय मउलिय हत्थे ।
वत्ताणदाणे जणधणदाणे पई पोसिउ तुहं खत्तधरु । कोहण संवच्छरि प्रासाढइ,
तब चरण विहाणे केवलणाणे तुहं परमप्पउ परम परु। दह मइ दियहि चंद रुइ रुवइ । पत्ता
अन्तिमभागः- .
चिरु पट्टणे छगे साहु साहु, 'णिरु णिरहहु भरहहु बहु मुणहु कइ कुल तिलएं भरिणयउं। मुपहाण पुगणु तिसट्रिहि मि पुरिसहं चरिउं समाणि'.
तहो सुउ खेला गुणवंतु साहु । उ ॥१४
तहो तणरुहु वीसलु णाम साहु,