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वोरसेवामन्दिर ग्रन्थमाला
गाथा
सिरि पदमनंदि भट्टारकेण ।
सो जग सांति चरितं पुव्वायरिएहि परिभिउ लोए । तह कह कहरण रिगमित्तें ठाकुर कवि भायर कुरणए ॥ ३ ॥
दोहोवारणी गिम्मल गौरवहि, भागमु सरिसु पयट्ठ । सागर वीर जिनिन्द भरि सेणिक सर्वाणि सुट्ट. ॥४॥
पढहु सुतासु सुभचंददेव, जिणचंद भट्टारक सुभगसेव । सिरि पहाचंद पापाटि सुमत्ति, परिभगहु भट्टारक चंदकित्ति । तहु वारइ किय कहा-पबंधु, सुसहावकररण जगि जेम बंधु । प्राचारिय धुरि हुउ रयरकित्ति, तहु सीसु भलो जग भुवणकित्ति ।
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भट्टारक परणमि रामों जति सासरिण,
लार ।
सासरिण जे चंदकित्ति परणमो पुहवि प्रवर महिमंडलि भवण कित्ति पट्टि जे सार ।। मानो मंडलीइ मोरिय महि, कित्ति वंत जगकित्ति विसास अनेकान्त प्राचार अधिक मति, नेमिचंद सासन रखिपाल || X
ता कय सिक्ख - साखा बहु सुजंति, नामाय नाम गणती प्रमित्ति । सिखि हूवउ सुमन साहरण सु-सत्ति, हुव सासण कमल - विकास मित्ति । दिक्खा - सिक्खा-गुण- गहरणसार, सिरि विसालकित्ति विद्याघ्रपार । तहु सिखि हूवउ लक्ष्मीसुचंद, भवि - बोहरण सोहरण-भुवण मिंदु । ता सिक्खु सुभग जगि सहसकित्ति, नेमिचंद हुवो सासनि सुयति । अज्जिका अन्नतिसिरि ले पदेसि, दाभाडाली वाई विसेसि । की कथा सुभग भागम-पमाण, सासय ललोय बुज्झहि प्रयाण ।
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X अन्तिमभाग:दुबई
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एयहि भवर प्रवर गुण संतति, जिरण सोलहम सुह-यरो । ता गुण चरण चारु चितवनि महि, ठाकुर किय कवि-सरो ॥ ५८ ॥ संवत सोलासइ सुभग सालि, बावन वरिसउ ऊपरि विसालि ।
पुविल्लि कथा जु हती प्रछूट, किम् वाणइ बहु जगि जटाजूट ।
सांसारिकथा किय सुगमसारि, साह ठाकुर कवि मंडी विचारि ।
भादव सुदि पंचमि सुभग वारि, दिल्लीमंडल देसु - देस मारि । अकबर जलालदी पातिसाहि, वारइ तहु राजा मानसाहि ।
संबारहु सज्जन विविह-छंद, मत्तागरण लगिलंकार छंद । जिरणवारिण प्रणु गति लब्धपार, संतिरगाहकथा जलणिही प्रपार । जाहु जिसासरि जैनधम्म, कुलि जे दे साधुसुकिय कम्मु ।
करमवंसि श्रांवर सामि, लूढाहड देसहु सोभिराम । कइ इरिण गरिंदु जो श्रखयराज, भगवानि सुत न कूरम सुसाज ।
खंडेलवाल साल्हा पसंसि लोहाडिउ खेत्ताणि सुसंसि ।
सिरि मूलसंघ नंद्याम नाइ, सुरसह गच्छ सासन सुभाइ ।
ठाकुरसी सुकवि गामेण साह,
कुंदकुंदाचारिज अनुकमेरण,
पंडितजन प्रीति वह उछाह ।