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________________ १३० ] वोरसेवामन्दिर ग्रन्थमाला गाथा सिरि पदमनंदि भट्टारकेण । सो जग सांति चरितं पुव्वायरिएहि परिभिउ लोए । तह कह कहरण रिगमित्तें ठाकुर कवि भायर कुरणए ॥ ३ ॥ दोहोवारणी गिम्मल गौरवहि, भागमु सरिसु पयट्ठ । सागर वीर जिनिन्द भरि सेणिक सर्वाणि सुट्ट. ॥४॥ पढहु सुतासु सुभचंददेव, जिणचंद भट्टारक सुभगसेव । सिरि पहाचंद पापाटि सुमत्ति, परिभगहु भट्टारक चंदकित्ति । तहु वारइ किय कहा-पबंधु, सुसहावकररण जगि जेम बंधु । प्राचारिय धुरि हुउ रयरकित्ति, तहु सीसु भलो जग भुवणकित्ति । X X X भट्टारक परणमि रामों जति सासरिण, लार । सासरिण जे चंदकित्ति परणमो पुहवि प्रवर महिमंडलि भवण कित्ति पट्टि जे सार ।। मानो मंडलीइ मोरिय महि, कित्ति वंत जगकित्ति विसास अनेकान्त प्राचार अधिक मति, नेमिचंद सासन रखिपाल || X ता कय सिक्ख - साखा बहु सुजंति, नामाय नाम गणती प्रमित्ति । सिखि हूवउ सुमन साहरण सु-सत्ति, हुव सासण कमल - विकास मित्ति । दिक्खा - सिक्खा-गुण- गहरणसार, सिरि विसालकित्ति विद्याघ्रपार । तहु सिखि हूवउ लक्ष्मीसुचंद, भवि - बोहरण सोहरण-भुवण मिंदु । ता सिक्खु सुभग जगि सहसकित्ति, नेमिचंद हुवो सासनि सुयति । अज्जिका अन्नतिसिरि ले पदेसि, दाभाडाली वाई विसेसि । की कथा सुभग भागम-पमाण, सासय ललोय बुज्झहि प्रयाण । X X X अन्तिमभाग:दुबई 1 एयहि भवर प्रवर गुण संतति, जिरण सोलहम सुह-यरो । ता गुण चरण चारु चितवनि महि, ठाकुर किय कवि-सरो ॥ ५८ ॥ संवत सोलासइ सुभग सालि, बावन वरिसउ ऊपरि विसालि । पुविल्लि कथा जु हती प्रछूट, किम् वाणइ बहु जगि जटाजूट । सांसारिकथा किय सुगमसारि, साह ठाकुर कवि मंडी विचारि । भादव सुदि पंचमि सुभग वारि, दिल्लीमंडल देसु - देस मारि । अकबर जलालदी पातिसाहि, वारइ तहु राजा मानसाहि । संबारहु सज्जन विविह-छंद, मत्तागरण लगिलंकार छंद । जिरणवारिण प्रणु गति लब्धपार, संतिरगाहकथा जलणिही प्रपार । जाहु जिसासरि जैनधम्म, कुलि जे दे साधुसुकिय कम्मु । करमवंसि श्रांवर सामि, लूढाहड देसहु सोभिराम । कइ इरिण गरिंदु जो श्रखयराज, भगवानि सुत न कूरम सुसाज । खंडेलवाल साल्हा पसंसि लोहाडिउ खेत्ताणि सुसंसि । सिरि मूलसंघ नंद्याम नाइ, सुरसह गच्छ सासन सुभाइ । ठाकुरसी सुकवि गामेण साह, कुंदकुंदाचारिज अनुकमेरण, पंडितजन प्रीति वह उछाह ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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