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________________ जनग्रन्थ-प्रशस्तिसंगह [ १२५ x घणसण्ह गुरु व भायरुगुणालु, वारे समनउ सरय भासि । ते गाउं उभिउ बुहु तेजपालु। सिरि पासणाहु भव-जलहि जाणु, भो परम मित्त गुण गरुय गेह, महो एत्तिउ दिज्जउ विमलणाणु । परवालिय पयावसुविसुद्ध देह । पत्तापत्ता कइयण सिसु मायरि भुवण सुहायरि परमिट्ट हो मुह जिणमय धु लिणखण? सुहवालक्खण णिय सुकयतु । णिग्गमिया। पयासहि। कइ तेय सुहत्तिएं, घूधलि भत्तिएं तियरण वाएसरि सिरिपासह सुक्नणिरंतरु, महोषिरएवि समासहि ।।४।। गमिया ॥३८ णामें सुरजण साहुदयावरु, सिरिपासचरितं रइयं बह तेजपाल साणंद।। लंबकंचु जणमण तोसायक। धणसिरि रमणि सुहवणेहासिय अणु मणियं सुहई घूघलि सिवदास पुत्तेण ॥१॥ रिणय जस पसरदि सरमुह वासिय । देवाण रयण विट्ठी वम्माएवीए सोलसोदिट्ठो। ल.अंबर पइव्वय सायर, कय गब्भ सोहणत्थं पढमो संधि इमो जाम्रो । भयणंदण गुणमणि रयणायर । अन्तिमभाग सुरजणसाहु सपरियण जुत्तउ, सुपहाण चरिउ पद्धडियबंधु, घूघलिकारा विउरमणिबद्ध । मच्छइ घरि सुहि णिवसंतउ । कम्मक्खय कारणु जिणचरित्तु, विरयउ भवसायर जाणवतु ।। ता संसारु णिए वि विरत्तउ, घत्ता भावण बारह मणि सुमरंतउ । पाउच्छरण कुच्छण सुच्छमई, वउ-तय-संजम-रिणयम-वहा । बेगएं ण उरिणय घर संठिउ, प्रमुणंत पयत्थह कहियलहु, पास जिणिंद अणिद हो ॥३७ मुत्ति रमणि राएणुक्कंठिउ । जिण सासण बड्डउ सयण काल, पणविवि पोमणंद मुणिसारउ, जणु वडउ वरिसउ मेह माल । दिक्खंकिउ सिवणंदि भडारउ । सुपयासउ सासउ महि सुहिक्खु, सुरजस पसरबसि दिव्वासउ, पय बहुउ दडउ रोरु दुक्खु । कय मासोपवास दिव्वासउ । जिण पासु हरउ जर-जम्मवहि, कइ वय वरिस अण्णु परिचत्तउ, महो देउ सुख सुंदर समाहिं । अणसणेणतरण मुएवि सुपवित्तउ । रणंदउ महियलि सिवदासु साहु, धम्मज्झाणे भव-सायर-तारउ, संभवउ विमलु सम्मत्तलाहु । गउ सुर हरि सिवणंदु भडारउ । घूघलि साहु हो कय सुयणमित्ति, घत्ताधवलतिय भमउ धरणियले कित्ति । तहो णंदण पाणंद मण अहिणंदहु महि विगयभय । महि मेरू जलहि रवि-चंदु जाम, ताहं जिणाभावलि णिरुभणमि सावय-जिणधम्मरया ॥३६ सिवदास वंसु णंदउ वि ताम । भीखमु साहु णामचिरुवुत्तउ, विक्कम भरणाह पसिद्ध कालि, पुणु पाणंदु सुपरियण जुत्तउ । परिरायपट्टि धण-कण-विसालि । घरणि उदयसिरि गेह पहाणी, पणरह सय पणरह अहियहि, वं ई हरसिरि णं इंदाणी। एत्तियइ जि संवच्छर गएहि । देवराजु तहो णंदणु जायउ, पंचमिय किण्ह कत्तियहो मासि, रयणु दुइज्जउ जणि विनायउ ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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