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________________ जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह ११६ बीयउ रयणुव जोइय सुवासु, पंदउ जिणवर सासण सारउ, पंडियउ रयणु सरसइ णिवासु । वंदउ जणु सावय वय पारउ । उबसम सम्मत्त पसित्त चेउ, वंदउ सयलु सहायणु सावउ, सुणिय दुपावज्जि य सुद्ध सेउ । एयह गंथहु सवण पयासहु । पुणु तइउ तइ विह पत्तु रत्तु, शंदउ बुह जो पढइ पढावइ, सुपह सियण वं कुरुहाह वत्तु । लिहइ लिहावइ चंगउ भावइ । जिण पयह वणच्चण वज्जपाणि, र्णदउ गो मिणि छह रस दाइणि, णीसेस कला गुण रण खाणि । घुम्मउ मद्दलु णच्चउ कामिणि । चउदारण चउर पर अग्गणीउ, होउ चिराउ सुभहु दायारउ, घण लोलम मग्गण मग्गणीउ । पुणु पुण बुहु दिउपाल पियारउ । बुह सत्थोत्तमु दिउपाल सुवहु, जय जय अजिय तजिय संमिदि पह, जो पयडउ दीसइ धम्म कुरुहु । हरहि देव महु जम्म-मरण-वह । कारियइ जेण चेथाल जाइ, पत्ताधय-दंड-मड सुविसालयाइ। समरण्ण पण्णदह सएह पंच तह कत्तिय पुण्णिम वासरे। जिण सहस कुडु वारिण पुरि सुद्ध, संसिद्ध गंथुइउ विजयसिंह किउ बुह दिउपाल पुणु कुडिल पुरिहि सलाप बद्ध । कयादरे ॥३२॥ सिरि षड्डमाण जिणदेव भवणु, इय सिरि पजियणाह तिस्थयरदेव महापुराणे धम्मत्थघणऐसें जह किउ समवसरणु । काम-मोक्ख चउ पयत्थ पयडण पहाणे सुकइण सिरि धत्ता विजयसिंह बुह विरइए महाभव्व कामराय सुय सिरि तेणवि पुरण एहु वह रएइ चरिउ प्रजिय अरुहह सुवरो। देवपाल विबह सिरो सेहए वमिए पजिय जिणणाह गमण कारेविण रम्मु पयणिय सम्मु सुसिरि प्रलंकिउ मउउ वण्णणोणाम दहमो संधि परिच्छेमो समत्तो ।। संधिः १०॥ _यरो ॥३१॥ १० कोडल पंचमी कहा (कोकिला पंचमी कथा) गाहासिरि सोमराय णंदणु णंदउ हरियासु पुण हरिमासो। ब्रह्म साधारण आदिभाग:गरसिंह विबुह तणुरुह लक्खणु गुणवंतु जसवासो ॥१॥ रिसह पमुह जिण पणविवि सरसइ चित्त धारि । शंदउ गंथमउडु इउ णिम्मलु, बह दिउपाल सीम ठिउ णिच्चलु । कुदकुद गणि पहससि पंकयणंदि भरि । वंदउ गंथ मउड कत्तारउ, गुरु भायर हरिणिज्जिय पंच सरे। विजय सीहु पंडिउ वत्तारउ । गुरु गरिंदकितीतर विज्जाणंदि यरे । वंदमि वय-विहि भासमि णिसुणहु भाउकरि । वंदउ बुह दिउपाल सपरियण, दूरंतरिउ थाउ तहु परियणु। मन्तिमभाग.णंदउ तहु घरि लच्छि मणोत्थिय, अण्ण जि वय-विहि पालहि ते अमरिदं तणु । जिण अण्षण दाणाइ पसंसिय । पुण गरिंदकित्ति तणु पालिय जीवगण । शंदउ परवइ दुग्णय हारउ, मुणि वरिंद वय पालि वि पावहि मुत्ति सिया । सयल पया परियरिउ दयालउ । पुन्य मुर्णिदहि भासिय जह तह एह किया। वंदउ देसु वासु पुरु पट्टणु, सरसइ खमउ भडारी सुरणर युय चरणा । भुवि सुय मउडु विकरउ पवट्टणु । महु परमत्य पयासउ भव-सायर-तरणा ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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