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________________ जनग्रन्थ-प्रशस्तिसंगह पहिलारउ संघहु भारवरण, चउभेय संघ बहु भत्ति-करण । संघाहिउ खीमविचंद सारु, तहु विण्णि भज्ज गुणगण विसारु । पढम वि घीकाही गुणवरिष्टु, बीई नानिगही अइव इट्ठ। तह पुत्त चयारि वि चउ रिणग्रोस । छीथा पढमउ भज्ज वि असोय । तिहुणाही णामें मिदासु, तोउ वि जायउ सीस किरणहासु । तहु कामिणी वि गज्जो वि णाम, बीयउ सुउ पिरथी मल्लु नामा तहु पिययम हिलगही पसिद्ध, तहु पुत्त चयारिवि गुण-समिद्ध। पढमउ उधरणु रणगउ विवीउ, गण गण गरिदु धणराउ तीउ । चौपाई चउत्थउ मानसिंघु वि भणि जइ, खेमचन्द्र सुउ तीयउ गिज्जइ । इंदेव कीड सो इंदराउ, रावणही कामिणि जो सराउ । . तहु पुत्त विण्णि णं लच्छिपिल्ल, संतीविहासु तारण रसिल्ल । पुणु चउथउ चंदु वि चंदहासु, दोदाही बहु सुउ सामिदासु।। बीयउ संघउ भार धुरंधरु, देवसत्थ गुरु भत्ति वि पायरु। जिण सह पोमिणि महिरायहंसु, पावारिणाय जो पवरहंसु । जुण्णय-सेतुंजय जत्तकारि, विहवेण विजित्तउ जे मुरारि । चौपई पंडियसमूह दप्पणु गिज्जइ, पंडियाह गुणणाय भरिणज्जह । साधारणु णामें सो भाणि, उवमा रहिउ वि जण-अहि-मारिणउ । तहु बरिणया सीवही णा, णं सरधोरणि पेसिय-कामें। पद्धडी तहु चारि तणुभव गुण महंत, जेहुबि सुअ अभयहु चंदु संत । चौपई चंदणही भज्जहि रसइल्लउ, बीयउ जेटुवि मल्लु गुणिल्लउ । वर भदासही भज्ज प्रलंकिउ, तीयउ जितसल्लो वि प्रसंकिउ । सो पिया वि समदो रइ माणइ, पुणु चउत्थु सोहिलु पिउ भाणइ। तासु णारि भीखणही पावण, णं मंदोयरि सीलहु भायण । संघाहिव णाणातीउ पुत्तु, संघाहिउ ताल्हणु गुणविचित्तु । संघवइ वि भोयहु तीउ तोउ, सिरियचंदुमाणंतु भोउ। धत्तातहुभज्जा गुणहि मणोज्जा हरराजही व भणिज्जा । सीलेण वि सीया प्राइव विरणीया णं सुतार जण गिज्जह ।। पद्धडी तहु भुल्लणु णामें तीउ (य) जाउ, वे कामिरणीहि मंडियउ कान । भोयह सुउ बीयउ गुण गण जूयउ, पाणचंदु पणिज्जइ। तहु भामिणि गुण-गण-रामिणि, सउराजही कहिज्जइ ॥२॥ तहु तिण्णि मंगसू तिण्णिा रयण, णं तिणि लोय ते सुद्धवयण । पढमउ सम्मेय वि जत्त करणु सारंग विणामें सुद्ध करणु। तहु ललण तिलोकाही गुणाल, राका-ससहर-दिप्पंत-भाल ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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