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वीर सेवामन्दिर-मन्थमाला
७२ ] सावय-यथ यांदकिय सुकम्म, जे वय भरु धारहि यटु-छम्म ।
यद रणमलु पुणु साहु धरलु, जिं चरिउ कराविड इहु खरखु । मुवियय सहसारहो तब वयधारहो मरुसे सामिहुत । उवएससुहरु व्यासिय भव-दुहु महु मणि विच्च थुति कुणो ॥ २ ॥
वीधो यामागेह-लड विह-संग्रह दाणे दच्छि । तहि उवरि उवण्या गुण संपुष्णा, पुत: तिथिय लक्खयहि जुवा वाह जि पुन पठमठ यां ससि पढमड, पीथा वामें दीह भुवा तासु पिया पियचित सुहायरि, भणिय कुबेरदेव यां सुरसरि । बीयर चंद फुड जस जसयर, पिय-कुल-कमल विद्यालय-भायरु | पल्हूण सी (सा) हु वलय-मण- चत्तड, जिया चरणारविंद - रय-रसउ । कर पालही हु [ह] भामिबि,
सिरि विक्कम समयंतरालि, वह ई दुस्सम विसम कालि । चदह सब संवछरह अय्य preuse हि पुजाय पुण्य ।
बाहहु चित्त विच्च अनुगामिणि । तीय सुठ पुखु बहु लक्खा घर, जो धाराहह अह णिसु जिणवर ।
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देव-सत्थ- गुरु पार्याहि लीाउ, कहमवि वयणु ण जंपह दीणउ । रणमलु ामु महिहि विक्खायड, जालपही पिययम-अणुरायउ । ति सुक्कोसल चरिउ कराविड, बिच्च चित्ति पुणु तहु गुण भाविउ । वायर यहि ससि भायरु, कुलगिरि-वर- करणयहि वरा जं त बुहहि णिरुत्तड चरिउ पवट्टड एहु धरा ॥२३
जामहि तावई
माह दुजि कियह दहमा दिव्यम्म, राहु रिक्खि पर्याय सकम्मि । गोवागिरि गोवग्गिरि) डूंगर शिवहु रज्जि, पइ पालंतर अरिराय तज्जि । जि-चरण-कमल यामिय सरीर, सावय-वय-रहधुर- धरण - धीरु । सिरि अयरवाल कुल गया चंदु, सघवीर विधा जण जणिय दु । वे पक्खज्जल सात यि भज्ज १, श्रभणी णामा वय - सील-सज्ज । तहि उवरि उवरणउ बार पहाणु, ग्रह-विसु भावित जिं धम्म-काणु । महलगि दिउ णामें साहु धण्णु ! यि जसे महि वीढ छ । तहु भज्जा दुक्खिय-जय जगेरि, मह सील तीर वहक्क धीरि । वीरो णामा वर चाय लीय, गह हंसियोव सण वीण । हुपु पढ जि-पाय-भत्त आरणाहिहाणु गिह-धम्मि रतु । तहु धरिणि गुणायर सुद्ध सील, जिय- धम्म-रसायणि जाहि कील ।
इ-सुकोसल- मुणिवर-चरिए णिरुवम-संवेय- रयणसंस (भ) रिए सिरि-पंडिय-रइधू विरइए सिरि-महा भव्य
आणासुत- रणमल ग्राम या मंकिए सुकोसल- णिग्वायगम या चढत्यो संधी परिच्छेचो समत्तो ॥ छ ॥ संधि ४ ॥
प्रति देहली पंचायती मन्दिर लिपि सं० १६३३ सिरि पासणाह चरिउ पं० रइधू
(पार्श्व पुराण
आदिभाग
पणविवि सिरिपालहो, सिवउरि-वासहो,
विहुणिय पासहो गुण - भरिश्रो । भवियह सुह-कारण, दुक्ख-विवारणु, पु महासमि तहु चरित्र ॥ रिसाहु पाविवि जिबिंदु.
* - सिरि अयर वाल वंसहि पहाणु, सिरि विधा संघ (ई) गुण बिहाइ ।
भव-तम-विलासवि जो दिबिंदु । सिरि अजित वि दोस - कसायहारि, संभड विजयचय- सोक्सकारि ।
सुकौशल चरित १-४