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________________ वीरसेवामन्दिर-मन्थमाला सुजस पसर वासिय दिग्बासडं, सहजपाल पढमडं जयवल्बहु, सिरि जसकित्ति णाम दिवास। तेजू इयरु विबुहजण दुल्लहु । बहुभासणि गुण-गण-मणि-सायर, बिरुवम-रूव-सील-वय-सज्जा, पववशत्य-प्रभासण-सावरु । मामेहीय पढमिल्लहु भज्जा। दो-विह-तक-सावें तवियंगो, पुरिस-यण-उप्पायण-खाणी, मन्व-कमन-वण-बोह-पयंगो। सञ्चित्त जि परहुव-सम-वाणी। बज्मामंतर-संग-प्रसंगो, तह उवरि उवण्णा सक्खण-पुरणा छह णदण पाणंद-भरा में दुग्जड विज्जियड भणंगो। णं जियावर भासिया दग्व सुहासिया, शं रस छह जण पोसपुन्वायरियाहं मग्ग पयासपि, वाह पढमु वर-कित्ति-लयाहरु, सन्वेषण मरंदुच शिरु जणि । दुहिय जगाय दुक्ख धण खययन। दिग्गंधुवि प्रत्यहं संजुत्ता, दाशुरणय-करु शं सुरकरि-करु, सत्वाववियरहं परिचय । परिवारहु पोसणि सुर भूनहु। बंद-सक्क-बायरब्यहि बाइय, जिण-पूयाविहि-करण-पुरंदर, जियि जिणि विस-सिक्खा दाविय । थियकुल मंदिर बहु सोहायरु । उत्तम-खम-वालेण धर्मदउं, भूरि दम्वु ववसाएं अजिवि, मलयाकत्ति रिपिवक चिर यंदडं। जच्छि सहाउं चवलु पडिवजिवि । वहो पर पहुवहरिउंह मज्जमु, जिणणाहहु पट्ट काराविवि, धरिय चरित्तायरण स-संजमु । मण-दलिय दाणई बहु दाविति । गुरु-गुणयण-मणि-पाइय-भूसा, तित्ययरत्त-गोत्तु जि बद्धर, बयण-पउत्ति-जणिय-जय-सणु । संघाहिउं सहदेउ जसद्धउ । कब-कामाइय-दोस विसज्जण, धामाहिय तहु भामिणि भासिय, दसिय माण-महागय-तज्जन । जिणदासहु सुवेण हासिय । भवियण-मण-उप्पाइय-बोहणु, कुमरपाल हिय जिणदासहु पिय, सिरि गुणभह महारिसि सोहण । कहु उवमिजई तहिं सीलहु सिय । पत्ता-एयह मुणिविंदहिं भवतम-वंदहं पय-कमलाई जे अत्त हुया मामा माइय जिण-पय-कमल, वाह जियामावलि पयडमि भूयति, वंदिगणहिं जा णिच्च थुया पढमढं बीयउं तीयउं अमल । विय-जस-पसर-दिसा-मुह-वासिय, बच्छराज साभूणा माल, वर-हिंसार-पहहिं शिवासिय । तिरिय पुत्त हुय ताई गुणाल । अयरवाल कुल-कमल-दिवायर, सहजपाल सुउ बीयउ पुणुहूयउ, छीतमु गयतमु विर गोयल गोति पयउ णियमायर । दुहियहं दुख-खंडणु पियकुलमंडणु गुण-वरणणिकोईसुर मासि पुरिस जे अगणिय जाया (पड), बहु पिया खिम गुण सील प्रतुल्ली, ताई जि कि वरणम्मि विक्वायड । जायण-जण-प्रासा-तरु-वल्ली। जिण-पय-पंकयाई पिकप्पड, खिउ धरही अहिहाणे साहिलं, परियापिड सचित्ति परमप्पड । ताहि गम्भि हुई पुत्त गुवाहिउं । जाल्हे णाम साहु चिरु पुत्तलं, बह पमाण भूयलि सु-पमाणिय, पुन जुबल बहु हुवड पिक्चर्ड । गुरुयण जेहिं णिच्च सम्माणिय । सह जोमय गुण मणिरययावर, वणिवर-यह जो मुक्खेसर, तिविह पचदाण कयायक। बीयराय-पय-पंकय-महुयर।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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