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२६ समिति गुप्ति सूत्र
(प्र) अष्ट प्रवचन माता ईर्या रही समिति प्राद्य द्वितीय भाषा, तीजी गवेषप धरे नश जाय पाशा । प्रादान निक्षिपण-पुण्य निधान चौथा व्युत्मर्ग पचम रही सुन भव्य श्रोता । कायादि भेद वग भी त्रय गुप्तियाँ है, ये गुग्नियां ममितियां जननी समा है ॥३८४॥ माता म्वकीय मुन की जिम भांति रक्षा, कर्तव्य मान करती, बन पूर्ण दक्षा, गुप्त्यादि अप्ट जननी उस भांति सारी, रक्षा मुरत्नत्रय की करती हमागे ।।३८५॥ निर्दोप में ग्ति पालन पोपनार्थ, उल्लेविना ममितियां गुरु में यथार्थ । ये गुप्तिया इमलिये गुरु ने बताई, कापापिकी परिणती मिट जाय भाई ! ।।८६।।
निर्दोप गुप्तित्रय पालक माधु जैसे, निर्दोप हो ममितिपालक ठीक वैमे । वे तो अगुप्ति भद-मानस-मेल धोने, ये जागने समिति-जात प्रमाद खोते ॥१८॥
जी जाय जोव अथवा मर जाय हमा, ना पालना समितियां बन जाय हिसा। होती रहे वह भले कुछ बाह्य हिंसा, तू पालता समितियां पलती महिसा ॥३८८।।