________________ रागादि भाव उठना वह भाव हिसा, होना प्रभाव उनका मनझो अहिंसा / त्रैलोक्य पूज्य जिनदेव हमें बताया, कर्तव्यमान निजकार्य किया कराया / / 153 / / कोई मरो मत मरो नहि बंध नाता, रागादिभाव वश ही दुन कर्म प्राता / शास्त्रानुसार नय निश्चय नित्य गाता, यों कर्म-बन्ध-विधि है, हमको बनाता // 154 / / है एक हिसक तथैक असंयमी है, कोई न भेद उनमें कहते यमी है / हिंसा निरंतर नितान्त बनी रहेगी, भाई जहां जव प्रमाद-दगा रहेगी // 155. हिंसा नहीं पर उपाम्य बने अहिमा, ज्ञानी करे मतन हो जिम की प्रगमा / ले लक्ष्यकर्म क्षयका बन सत्यवादी, होता अहिमक वही मुनि अप्रमादी // 156 // हिंसा मदीय यह प्रातम हो अहिमा, सिद्धान्त के वचन ये कर लो प्रशंमा / ज्ञानी अहिमक वही मुनि अप्रमादी, हा ! मिहमे अधिक हिमक हो प्रमादी // 157 / / उत्तग मेरु गिरि सा गिरि कौन सा है ? निस्सीम कौन जगमें इम व्योम सा है ? कोई नहीं परम धर्म विना अहिमा, धारो इसे विनय से तज मर्व हिंसा // 158 / / षणानुवाद