________________ 12 अहिंसा सूत्र जानो तभी तम सभी सहमा बनोगे, संपूर्ण प्राणिवध को जब छोड़ दोगे। है साम्यधर्म वह है जिसमें न हिंसा, विज्ञान मंभव कभी न, बिना अहिंसा // 147 / / हैं चाहते जबकि ये जग जीव जीना, होगा अभीष्ट किसको फिर मृत्यु पाना? यों जान, प्राणिवध को मुनि शीघ्र त्यागें. निग्रंथरूप धरके, दिन रैन जागें // 148 / / हे जीव ! जीव जितने जग जी रहे है. विख्यात वे मब चराचर नाम मे है। निग्रंथ माधु बन, जान अजान में ये, मारे कभी न उनको न कभी मराये // 149 / / जैसा तुम्हे दुग्व कदापि नही मुहाता, वैसा अभीष्ट पर को दुख हो न पाता। जानो उन्हें निज समान दया दिवानो, सम्मान मान उनको मन मे दिलामो // 150 / / जो अन्य जीव वध है बध प्रो निजी है, भाई यही परदया स्वदया रहा है. साधू स्वकीय हितको जब चाहते है. वे सर्व जीव वध निश्चित त्यागते है / / 151 // तू है जिसे समझता वध योग्य बैरी तु ही रहा "वह" अरे यह भूल तेरी / तू नित्य सेवक जिमे बस मानता है, तू ही रहा 'वह" जिसे नहि जानता है // 152 / / समणसुतं