________________ चंद्रानना, मृगदृगी, मृदुहासवाली, लीलावती, ललित ये ललना निराली / देखो इन्हें, पर कभी न बनो विकारी, मानो तभी कि हम हैं सब ब्रह्मचारी // 112 / / संसर्ग पा अनल का झट लाख जैसा, स्त्री संग से पिघलता प्रनगार वैसा / योगी रहे इसलिए उनमे सुदूर, एकान्त में विपिन में निज में जरूर // 113 // कामेन्द्रिका दमन रे ! जिसने किया है, कोई नहीं अब उमे कठिनाइयां है / जो धैर्य मे अमित मागर पार पाना, क्या गीघ्र मे न सरिता वह तैर जाना ? // 11 // नारी रहो, नर रहो जब शील धारी, म्त्री मे बचे नर, बचे नरसे सुनागे / म्त्री प्राग है, पुरुष है नवनीत भाई, उद्दीप्त एक, पिघले, मिलते बुराई // 115 / / होती मुशोभित नथापि मुनारि जाति, फैली दिगंततक है जिन-शील-व्याति / ये हैं पवित्र धरती पर देवतायें, पूजें इन्हें नित सुगमुर अप्सरायें // 116 / / कामाग्नि मे जल रहा त्रयलोक मारा, देखो जहां विषय को लपटे अपाग / वे धन्य है यदपि पूर्ण युवा बने है, सन् गोल मे लम रहे निज में रमे है।।११७।। पप्रानुवाद