________________
बोलो न प्रांग्ल नर से यदि मांग्ल भाषा, कैसे उसे सदुपदेश मिले प्रकाशा? सत्यार्थ को न व्यवहार बिना बतायाजाता सुबोध शिशु में गुरु से जगाया ॥३८॥
भूतार्थ शुद्ध नय है निज को दिखाता, भूतार्थ है न व्यवहार, हमें भुलाता । भूतार्थ की शरण लेकर जीव होतासम्यक्त्व भूषित वही मन मैल धोता ॥३९।।
जाने नहीं कि वह निश्चय चीज क्या है हैं मानते सकल बाह्य क्रिया वृथा है। वे मूढ़ नित्य रट निश्चय की लगाने चारित्र नष्ट करते, भव को बढ़ाते ॥४०।'
शुद्धात्म में निरत हो जब सन्त त्यागी, जीवे विशुद्ध नय प्राथय ले विरागी । शुद्धात्म से च्युत, सराग चरित्र वाले भूले न लक्ष्य व्यवहार अभी संभाले ॥४१॥ हैं कौन से श्रमण के परिणाम कैमे, कोई पता नहिं बता सकता कि ऐमे । तल्लीन हों यदि महावत पालने में वे वन्द्य हैं नित नमू व्यवहार में मैं ॥४२॥
वे ही मृषा नय करे पर की उपेक्षा, एकान्त से स्वयम की रखते अपेक्षा । सच्चे मदेव नय वे पर को निभा ले बोलें परस्पर मिले व गले लगा लें ॥४३।।
पद्यानुवाद