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४ निरूपणसूत्र निक्षप और नय, पूर्ण प्रमाण द्वारा, ना अर्थ को समझता यदि जो सुचारा । तो मत्य तथ्य विपरीत प्रतीत होता , होता असत्य सव सत्य, उसे डुबोता ॥३२॥
निक्षेप है वह उपाय सुजानने का , होता वही नय निजाशय ज्ञानियों का। तृ ज्ञान को समझ सत्य प्रमाण भाई , यों युक्ति पूर्वक पदार्थ लखें, भलाई ॥३३।।
दो मूल में नय सुनिश्चय, व्यवहार , विस्तार शेप इनका करता प्रचार । पर्याय द्रव्य नय हैं मय दो नयों में , होते सहायक सुनिश्चय साधने में ॥३४।।
धारे अनन्त गुण यद्यपि द्रव्य सारे , तो भी "सुनिश्चय" अखंड उन्हें निहारे । पं खंड, खड कर द्रव्य प्रखंड को भी , देखें कथंचित यहां "व्यवहार" सो ही ।।३।। विज्ञान प्रो चरित-दर्शन विज्ञ के हैं, जाते कहें, सकल वे व्यवहार से हैं। ज्ञानी परन्तु वह ज्ञायक शुद्ध प्यारा, ऐसा नितान्त नय निश्चय ने निहारा ॥३६॥
है नित्य निश्चय निषेधक, मोक्ष दाता, होता निषिद्ध व्यवहार नही मुहाता । लेते मुनिश्चय नयाश्रय संत योगी, निर्वाण प्राप्त करते, तज भोग भोगी !॥३७॥
समणस्त