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४२. निक्षेप सूत्र कोई प्रयोजन रहे तब युक्ति साथ, प्रोचित्त्य पूर्ण पथ में रखना पदार्थ । 'निक्षेप' है समय में वह नाम पाता, नामादि के वश चतुर्विध है कहाता |७३७।। नाना स्वभाव अवधारक द्रव्य प्यारा, जो ध्येय ज्ञेय बनता जिस भाव द्वारा । तद्भाव की वजह से इक द्रव्य के ही, ये चार भेद बनते सुन भव्य देही ! ।।७३८।। ये नाम स्थापन व द्रव्य स्वभाव चारों, निक्षेप है तुम इन्हें मन में सुधारो। है नाम मात्र बम द्रव्यन की मुसंज्ञा, है नाम भी द्विविध ख्यात, कहे निजज्ञा ॥७३९।। आकार इतर 'स्थापन' यों द्विधा है, महन्त बिम्ब कृत्रिमेतर आदि का है। प्राकार के बिन जिनेश्वर स्थापना को, तू दूसरा समझ रे ! तज वासना को ॥७४०।। जो द्रव्य को गत अनागत भाव बाला, स्वीकारना कर मुसांप्रत गौण सारा । निक्षेप द्रव्य वह पागम में कहाता, विश्वास मात्र उसमें बस भव्य लाता ।। निक्षेप द्रव्य, द्विविधा वह है कहाता, नोमागमागमतया सहसा सुहाता । ना शास्त्रलीन रहता, जिन शास्त्र ज्ञाता, मो द्रव्य प्रागम जिनेश तदा कहाता ।
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