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जीवादि द्रब्य छह ये मिलते जहाँ हैं. माना गया अमित लोक यही यहाँ है । आकाश केवल प्रलोक वही कहाता, यों ठीक-ठीक यह छन्द हमें बताना ॥६३६।।
है स्पर्श रूप रम गन्ध विहीन होता, मंवर्तनामय सुलक्षण जो कि ढोना । है धारता गुण सदा अगुमलय को, है काल म्बीन यही जग में प्रभ को ।।६३७।।
है हो रहा नित अचेतन पुद्गलो में, धाग-प्रवाह परिवर्तन चेतनों में । वो काल का वा अनुग्रह तो रहा है, वैराग्य का परम कारण हो रहा है ।६३८।।
घटा निमेप समयावलि मादि देखो, होते प्रभेद जिम में महमा अना।। होता वही समय में व्यवहार साल, है वीतगग जिनका मत है. निहाल । २९॥
दो भेद, कन्ध, अण पुदगन के पिछानो, है म्कन्ध नेद छह दो प्रण के मजानो । है कार्य Fप अण कारण "प दूजा पै चर्म चक्ष अगु की करती न प्रजा : ६४०॥
है स्थूल-ग्थल, फिर स्थूल, व स्थल मथम, औ मूक्ष्म म्थन पुनि मूक्ष्म मुमूम मूक्ष्म । भू, नीर, ग्रानप, हवा, विधि-वर्गणायें, ये हैं उदाहरण म्पन्धन के गिनाये । ६४१।।
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