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________________ ( ११ ) है। भाप संघस्थ साधुनों से माचार पालन कराने में भी श्रीफल के समान ऊपर से कठोर कि तु अंतरंण में प्रत्यन्त कोमल हैं। प्राचार्य श्री को अपने गिष्यों की शिक्षा एवं उनके चरित्र पालन कराने प्रादि का भलीभांति ध्यान रहना है । आपने अपने गुरु प्राचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज की सल्लेम्वना के समय जो अपूर्व मेवा की उसकी चर्चा सुनते ही प्रांखों में अश्रुधारा प्रवाहित हो जाती है। मापने अपने रचित प्रन्थों में : 'निजानुभव शतक' में प्रात्मानुभव के उपाय, प्रात्मानुभव के वाधक कारणो का मान एव प्रात्मानुभव का फल । 'निर-जन शनक' में--भगवान भन मोर भक्ति की अपूर्व धाग प्रवाहित की है जिसमें भन स्वानुभूति के द्वारा भगवान में प्रभेद हो जाता है और दंत समाप्त हो जाता है। 'भावन शतक' मेमोलह कारण भावनामों का प्रपूर्व चिन्तनपूर्ण भावों का प्रदर्शन किया है। इन भावनाप्रो के मनन एवं अनुभवन के द्वारा प्रगले भवों में तीर्थकर प्रकृति का वध हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। प्राचार्य श्री के बारे में जो भी लिखा जावे मूर्य को दीपक दिवाने के ममान हंगा। ग्रापकी प्रनिभा एवं श्रमणोनम वृनि को देखकर श्रावको का मस्तक बरबम प्रापके चरणों में भक जाना है। प्रापके मन में एक ही बान ममायी है कि जिम प्रकार में मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में अग्रमः हो गया हूँ उ मी प्रकार टम मंमार के मनुाय विषय वामना की झठी चका चोप को छोडकर मोक्षमार्ग में लग जावे । "मी आपकी अनुकम्पा युत उत्पट भावना है जिसे देखकर ऐमा लगता है कि ग्राप भी तीर्थकर प्रकृति का वध कर ही लेंगे । प्रापक पीतगगता में प्रोन-प्रांत एव प्रमीम अनुकम्पा मे भरपूर प्रवचन मुनकर प्रत्येक धना को ऐमा लगने लगता है कि यह ममार क्षण-भंगुर एव मारहीन है. इमलिये प्राचार्य श्री के चरणों में रहकर प्रात्म-हित कर लिया जावे । अपूर्व अवसर : यह नो मिद क्षेत्र कुण्डलपुर के बटे बाबा की चुम्बकीय शक्ति ग ही प्रभाव नथा हम लोगों का परम मौभाग्य है कि ऐसे वीनगगी परोपकाने
SR No.010235
Book TitleJain Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherRatanchand Bhayji Damoha
Publication Year1978
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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