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सद्भावना वश निजातम शोभती त्यों, निःछिद्र नाव जल में वह शोभती ज्यों। नौका समान भव पार उतारती है, रे ! भावना अमित दुःख विनाशती है ॥२९॥
सच्चा प्रतिक्रमण, द्वादश भावनायें, मालोचना शुचि समाघि निजी कथायें। भावो इन्हें, तुम निरन्तर पाप त्यामो, शीघ्रातिशीघ्र जिससे निज धाम भागो।।५३०॥
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