SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३) ने नहीं ठहर सकता । ईश्वरको हितैषी पूज्य पिता कहते हैं, परन्तु "सको कर्ता माननेसे वह कदापि हितैषी पिता नहीं हो सकता। सारी हितैषी पिता सदा अपने प्रिय पुत्रको बुरे कामोंसे हटाता , रात दिन उसके सुधारने का उद्योग करता है और उसमें अपनी क्त्यिनुसार बहुत कुछ सफलता देखता है। परंतु पूर्ण सफलता इस चरणसे नहीं होती कि उसकी शक्ति बहुत थोड़ी है । यदि उसमें वंशक्ति हो तो वह एक मिनट में अपने पुत्रको खोटे मार्गसे हटाकर चे मार्ग पर ले आवे किन्तु परमात्मा तो सर्वशक्तिमान हितैषी पेता है, वह तो अपनी शक्तिसे सब कुछ कर सकता है । फिर म लोगोंको क्यों एकदम ऐसी बुद्धि नहीं देता कि हम तुरत बुरी तोंको छोड दें ? लेकिन ऐसा देखनेमें नहीं आता । इससे यह सेद्ध हुआ कि वह इस कर्ताहर्तापनके झगड़े में नहीं है । यदि है सो वह अल्पशक्तिधारी और हमारा द्वेषी है, पिता नहीं कुपिता है कि शत्रु है। यदि यह कहा जावे कि ईश्वरने प्रारम्भसे ही जीवोंको कर्म रनेके लिए स्वतंत्र किंतु फल भोगनेके लिए परतंत्र बनाया है, तो ह बतलाइए कि जीवको जो ज्ञान शुरूमें दिया गया उससे जीव रे कामोंकी ओर झुका या बुरे काम और बुरी बातोंको देखकर रे काम करने लगा ? यदि ज्ञानसे, तो ऐसा ज्ञान जीवको क्यों
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy