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अनानुपूर्वी ।
( १ ) इस अनादि अनन्त ससार
में यह जीव अनादि काल से
चौरासी लक्ष जीवयोनी में भ्रमण करता है तथा दुःख
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१ / ३ ५ । ४ । २
सहता है | दुःख से प्राप्त हुवा
ऐसा चिन्तामणी रत्न समान मनुष्य जन्म पाकर यदि वि
प्रमादवश होकर उत्तम वाहन को
पय सुख, तृष्णा में लुप्त होकर धर्म नहीं करता है और उत्तम जन्म को वृथा गुमा देता है जैसे समुद्र में डूबता हुवा, छोड़ कर पत्थर को ग्रहण करता है तथा मुसीबत से प्राप्त किये हुवे चिन्तामणी रत्न को आलस्य से समुद्र में डालता है इस मनुष्य जन्म को शास्त्रकारों ने बहुत प्रकार से दुर्लभ बताया है ।
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