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मिटायरे || प्रा० ॥ श्री० ॥५॥
सवद रूप रस गंधन जामें ना सपरस तप छाहिरे ॥ प्रा० ॥
तिमर उद्योत प्रभा कछु नाहीं आतम
अनुभव माहिरे || प्रा० ॥ श्री० ॥
सुष दुष जीवन मरन अवस्था || ऐ दस प्रान संगारे | प्रा० ॥
इनथी भिन्न बिचद रहिये || ज्यों जल में जल जातरे ॥ प्रा० ॥ ७ ॥
श्री महावीर नमो वरनाणी ॥ २४ ॥ इति ॥
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