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में ॥ ७ ॥ कुंशु जिन राज०॥इति॥१८॥
ढाल अलगी गिरानी ॥ ' एदेशी ॥ तु चेतन भज अरह नाथने ॥ ते पशु निभवन राय । तात सुदरसण देवी माता ॥ तेहनों पुत्र कहाय ॥ १॥ 'साहिब सीधौ ॥ अरह नाथ अबिनासी सिब सुख लोधौ ॥ बिमल विज्ञान बिलासी साहिब कोड जतन करता नहीं पामैं ॥ एहबी मोटा माय ॥ बिम भक्ति करि नै लहिये। सुक्ति अमोलक ठाम् ॥ ३ ॥ साहिब० ॥ सम कितसहित कार्या जिन भगती ॥ · ज्ञान दरसन चारित्र ॥ तप बीरज' उपियोग तिहांस ॥ पूगटे परम पवित्र ॥४ा साहिब । सो उपियोग सरूप चेतोनंद ॥ जिनवर ने तू एक ॥ द्वैत अविद्या विभ्रम मेंटो। वाधै