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________________ __२६ में ॥ ७ ॥ कुंशु जिन राज०॥इति॥१८॥ ढाल अलगी गिरानी ॥ ' एदेशी ॥ तु चेतन भज अरह नाथने ॥ ते पशु निभवन राय । तात सुदरसण देवी माता ॥ तेहनों पुत्र कहाय ॥ १॥ 'साहिब सीधौ ॥ अरह नाथ अबिनासी सिब सुख लोधौ ॥ बिमल विज्ञान बिलासी साहिब कोड जतन करता नहीं पामैं ॥ एहबी मोटा माय ॥ बिम भक्ति करि नै लहिये। सुक्ति अमोलक ठाम् ॥ ३ ॥ साहिब० ॥ सम कितसहित कार्या जिन भगती ॥ · ज्ञान दरसन चारित्र ॥ तप बीरज' उपियोग तिहांस ॥ पूगटे परम पवित्र ॥४ा साहिब । सो उपियोग सरूप चेतोनंद ॥ जिनवर ने तू एक ॥ द्वैत अविद्या विभ्रम मेंटो। वाधै
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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