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________________ भरोसो आपको भारी ।। बिचारो बिरद उप गरीि ॥ २ ॥ कुथु० ॥ उमाहाँ मिलन को तौसे॥ नराखौ आतरो मौसै॥ जिसी सिधि अवस्था तेरी ॥ तिसी चेतन्यता मेरी॥ ३ ॥ कुंथु० ॥ करम भ्रम जाल को दपट्यौ । विष सुख ममत में ळपट्यौ । भ्रम्यै हूँ चिहूँ गति मांहीं । उदैकम भ्रमकी छांही ॥ ४ ॥ कुंथु ।। उदै कौ जोर है जोलूँ ॥ न छूटै विष सुख तोलू ॥ कृपा गुरु देवकी पाई ॥ निजातम भावना आई ॥ कुंथु ॥ ५॥ अजब अनुभूति उरजागी । सुरति निज- सूर्य में लागी । तुमाई, हम एकतो: जाणूं -4 : छते . प्रम कलपना मानूं ॥ ६॥ श्री देवी सूर नृप नँदा ॥ अहो सरवज्ञ सुखकंदा ॥ बिनचद लीन तुम गुन में ॥ न व्यापै. अविद्या उन 1
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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