________________
( ११९ ) :
मुनि * पांच महाव्रत पटम रात्रीभोजनरूप व्रतको धारण करे || अपितु भावनाओं द्वारा भी महाव्रतों को शुद्ध करता रहे क्योंकि प्रत्येक २ महाव्रतकी पांच २ भावनायें हैं । भावना उसे कहते हैं जिनके द्वारा पांच महाव्रत सुखपूर्वक निर्वाह होते हैं, कोई भी विघ्न उपस्थित नही होता, सदैव काल ही चित्तके भाव व्रतोंके पालने में लगे रहते हैं || सो भावनाओंका स्वरूप निम्न प्रकार से है ॥
प्रथम महाव्रतकी पंच जावनायें ॥
प्रथम भावना - महाव्रत के धारक मुनि जीवरक्षाके वास्ते विना यत्न ऊठ बैठ गमनागमण कदापि न करें और नाहि किसी आत्माकी निंदा करें क्योंकि निंदादि करनेसे उन आत्माओंको पीड़ा होती है, पीड़ा होनेसे महाव्रतका शुद्ध रहना कठिन हो जाता है | द्वितीय भावना - मनको वशमें रखना और हिंसादि युक्त मन कदापि भी धारण न करना अर्थात् मनके द्वारा किसीकी
* पाच महाव्रतोंका षष्टम रात्रीभोजन त्यागरूप व्रतका स्वरूप श्री दशवैकालिक सूत्र, श्री आचाराग सूत्र, श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र इत्यादि सूत्रोंसे जान लेना ॥
•