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________________ ( ११३ ) कपाट होते हैं तथावत् ब्रह्मचर्य आत्मज्ञानकी रक्षा करनेवाला है। अपितु जिस प्रकार शिरके छेदन हो जानेपर कटि भूजादि अवयव कार्यसाधक नहीं हो सक्ते इसी प्रकार ब्रह्मचर्यके भग्न होनेपर और व्रत भी भग्न हो जाते हैं। फिर ब्रह्मचर्य सर्व गुणोंको उत्पादन करता है। अन्य व्रतोंको इसी प्रकारसे सुशोभित करता है जैसे तारोंको चन्द्र आभूषणोंको मुकुट वस्त्रोंको कपासका वस्त्र पुष्पोंको अरविंद पुष्प वृक्षोको चं. दन सभाओंको स्वधर्मीसभा दानोंको अभयदान ज्ञानोंको केवल ज्ञान मुनियोंको तीर्थकर वनोंको नंदनवन । जैसे यह वस्तुयें अन्य वस्तुयोंको सुशोभित करती हैं इसी प्रकार अन्य नियमोंको ब्रह्मचर्य भी सुशोभित करता है क्योंकि एक ब्रह्मचर्यके पूर्ण आसेवन करनेसे अन्य नियम भी मुखपूर्वक सेवन किए जा सक्ते हैं। फिर जिसने इसको धारण किया वे ही ब्राह्मण है मुनि है ऋषि है साधु है भिक्षु है और इसीके द्वारा सर्व प्रकारकी मु. खोंकी प्राप्ति है। यथाप्राणभूतं चरित्रस्य परब्रह्मक कारणम् ॥ समाचरन् ब्रह्मचर्य पूजितैरपि पूज्यते ॥ १॥
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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