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|| जय || ३|| सीतल चंदन नीपरें जपता तिस
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दिन जाप || बिषै कषायना ऊपने ॥
मेटौ
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भव दुखताप ॥ ४ ॥ जय० ॥ आरतं रुद्र प्रणाम थी उपजै चिंता अनेक।। ते दुख कापो मानसी || आप अचल बिबेक ||५|| जय || रोगादिक क्षुधा त्रिषा ॥ सब सत्र अख प्रहार सकल सरीरी दुखः हरौ ॥ दिलसँ बिरुद बिचार ॥ जय ॥ ६ ॥ सुप्रसन होय सीतल प्रभु तू आसा बिसराम || बिनेचंद कहै गो भणी दीजै मुक्ति मुकाम ॥ ७ ॥ जय जय जिन त्रिभुवन धणीः सेव्या सुरतरू जेहवौ ।। बँछत सुख दातार ॥ जय० ॥ इति ॥ १ ॥
॥
इ
ढाल || राग काफी देसी होरी की मा चेतन जाण, कल्यांण करन कौ ॥ आन मिल्यो अबसररे.. साख प्रमान पिछान प्रभू