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( ९४ ) और भावसे लोकमें अनंत वर्गों की पर्याय अनंत ही गंध, रस, स्पर्शकी पर्यायें और अनंत ही संस्थानकी पर्याय, अनंत ही गुरु लघु पर्याय, अनंत ही अगुरु लधु पर्याय हैं इस वास्ते भावसे भी लोक अनंत हैं। सो द्रव्यसे लोक सान्त १ क्षेत्रसे भी सान्त २ काळसे लोक अनंत ३ भावसे भी लोक अनंत है ४ ॥ सो उक्त लोको अनंत आत्मायें स्थिति करते हैं और स्वः स्वः कर्मानुसार जन्म मरण मुख वा दुःख पा रहे हैं। अपितु लोक शब्द तीन प्रकारसे व्यवहृत होता है जैसेकि-उर्व लोक १ तिर्यग् लोग २ अधोलोक ३ ॥ सो उर्ध्व लोकमें २६ स्वर्ग हैं, उपरि इषत प्रभा पृथ्वी है और लोकाग्रमें सिद्ध भगवान् विरजमान है।। और तिर्यग् लोकमें असंख्यात द्वीप समुद्र है और पाताल लोकमें सप्त नरक स्थान है वा भवनपत्यादि देव भी है किन्तु मोक्षके साधनके लिये केवल मनुष्य जाति ही है क्योंकि जाति शब्द पंच प्रकारसे ग्रहण किया गया है जैसेकि इकेंद्रिय ज्ञाति जिसके एक ही इन्द्रिय हो जैसेकि पृथ्वीकाय १ आपकाय २ तेयुःकाय ३ वायुकाय ४ वनस्पतिकाय ५। इनके केवल एक स्पर्श ही इन्द्रिय होती है । और द्विइन्द्रिय जीव जैसेकि शीप शंखादि इनके केवल शरीर और जिहा यह दोई