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________________ ( ९३ ) भाषार्थः - श्री भगवान् वर्द्धमान स्वामी स्कंधक संन्यासीको लोगका स्वरूप निम्न प्रकारसे प्रतिपादन करते हैं कि हे स्कंधक ! द्रव्यसे लोक एक है इस लिये सान्त है १ । क्षेत्रसे लोक असंख्यात योजनों का दीर्घ वा विस्तीर्ण है और असं ख्यात योजनोंकी परिधिवाला है इस लीये क्षेत्र से भी लोक सान्त है २ । कालसे लोग अनादि है अर्थात् किसी समय में भी लोगका अभाव नहि था, अब नही है, नाही होगा अर्थात् उत्पत्ति रहित है, नित्य है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है, किन्तु पंच भरत पंच ऐरवय क्षेत्रोंमें उत्सपिणि काल अवसर्पिणि काल दो प्रकारका समय परिवर्तन होता रहता है और एक एक कालमें पद् पद समय होते हैं जिसमें पट् वृद्धिरूप पट हानीरूप होते हैं अपितु पदाधौका अभाव किसी भी समयमें नहीं होता, किन्तु पिसी वस्तुकी वृद्धि किसीकी न्यूनता यह अवश्य ही दुआ करती है । इनका स्वरूप श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्तिसे जानना । अपितु काळसे लोग अनादि अनंत है क्योंकि जो लोग जीव प्रकृति ईश्वर यह तीनों को अनादि मानते हैं और आकाशादिकी उत्पत्ति वा प्रलय सिद्ध करते हैं तो भला आधार के विना पदार्थ कैसे ठहर सकते हैं । इस लिये लोग अनादि माननेमें कोई भी बाधा नही पड़ती
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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