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________________ अंतरजामी भव दुपहरो ॥ इति ॥८॥ . . ढालाबुढापौ बैरी आवायो हो।कादी नगरी मली हो ॥ श्री सुग्रीवः नृपाल ॥ रामा तमु पट रागनी हो ।। तस सुत परम कृपाल || श्री मुविध जिणेसर बंदिये हो । . .. आँकडी! . __त्यागी प्रभुता राजनी हो.। लीधो सँजम भार ॥ निज़ आतम अनुभावधी हो। पाम्या प्रभु पद अविकार श्रीराअष्ट कर्म नो राजबाहो ॥ मोह प्रथम क्षय कीन ॥ सुध सम कित चारित्रनो हो । परम क्षायक गुणलीन ॥२॥ श्री|| ज्ञानां बरणी दर्सना बरनी हो। डाँतराय के अंताज्ञान दरसन बल येत्रिहूँ प्रगव्या अनंता अनँत ॥श्रीअवा बाह मुस्व पामीयाहौ । बेदनी करम क्षपायः ॥ अव
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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