SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११ सँभरमण बडौ समुद्रौ मैं ॥ सैल सुमेरू बि: राज ॥ तू ठाकुर त्रिभुवन में मोटा ।। भगतः कियादुष भाजे ॥ ६ ॥ श्री जिन: ॥ अगम अगाचर तूं अबिनासी अलष अषड अरुपी॥ चाहत दरस बिनचंद तरो। सत. चित. आनँद सरूपी ॥ ७॥ श्री जिनराज सुपास. पूरो आस हमारी ॥ इति ॥७॥ - . . ढाल || चौकनी देशी ॥ 'जय जय जगत सिरोमणी हूँ सेबकने हूँ धणी ॥ अब तोसू गाढी बणी प्रभु आसा पूरौ हमतणी।१।। मुझ म्हर करौ।। चंद प्रभू जग जीवन अंतरजामी ।भव दुःष हरौ।। सु णिये अरज हमारी ॥ त्रिभुवन स्वामी टेर।। चद पुरी नगरी हतीहासन नामा नरपती तमुराणो।। श्री लषमी सती । तराँ नंदन तू
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy