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________________ (२०) भावार्थ:-पुद्गल द्रव्यका यह स्वभाव है कि एकत्व हो जाना तथा पृथक् २ अर्थात् भिन्न होना तथा संख्यावद्ध वा संस्थान रूपमें रहना। संस्थानके ५ भेद है जैसेकि परिमंडल अर्थात् गो. लाकार १. वृत्ताकार २. साकार ३. चतुरंसाकार ४. दीर्घाकार ५. और परस्पर पुद्गलोंका संयोग हो जाना, फिर वियोग होना, यह पुद्गल द्रव्यके स्वाभाविक लक्षण हैं । फिर संयोग वि. योगके होने पर जो आकृति होती है उसको पर्याय कहते हैं । अपितु पृथक् वा एकत्व होनेके मुख्यतया दो कारण हैं, स्वाभाविक वा कृत्रिम । सो यह दो कारण ही मुख्यतया जगत्म विद्यमान हैं, जैसेकि जो कृत्रिम पुद्गल सम्बन्ध है उसके लिये सदैव काल जीव स्वः परिश्रमसे प्रायः यही कार्य करता दी. खता है । तथा काल स्वभाव नियति ३ कर्म, पुरुषार्थ अर्थात् समयके अनुसार स्वभाव होनहार कर्म पुरुषार्थका होना और उसके द्वारा अशुभ पुद्गलोंका वियोग शुभ पुद्गलोंका संयोग होता रहे और मोक्षका साधक जीव तो सदैव काल यही परिश्रम करता है कि मैं पुद्गलके बंधनसे ही मुक्त हो जाऊँ। जो स्वाभाविक पुद्गलका संयोग वियोग होता है, वह तो स्वः स्थितिके अनुसार ही होता है । तथा जो वस्त्र, भाजन, तथा ___दि जो जो पदार्थ ग्रहण करनेमें आते हैं तथा जो जो प.
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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