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________________ ( १४ ) भावार्थ:--समयका वर्तना लक्षण है इसी करके समय समय पर्याय उत्पन्न होता है, जैसेकि उपचारक नयके मत जीवकी व्यवस्थाका कारणभूत काल द्रव्य ही है । यथा-चाल ? युवा २ वृद्ध ३ अथवा उत्पन्न १ नाश २ ध्रुव ३ यह तीनों ही व्यवस्थाका कर्ता काल द्रव्य है और जो कुछ समय २ उत्पत्ति वा नाश पदार्थोंका है वे सर्व काल द्रव्यके ही स्वभावसे है अपितु द्रव्यांका उत्पन्न वा नाश यह उपचारक नयका वचन है किन्तु द्रव्यार्थिक नयापेक्षा सर्व द्रव्य नित्यरूप हैं । और पायोंका का काल द्रव्य है । जैसे सुवर्ण द्रव्यके नाना प्रकारके आभूषणादि बनते है। फिर उनही आभूपणादिको ढाल कर अन्य मुद्रादि बनाये जाते हैं, इसी प्रकार जो जो द्रव्यका पर्याय परिवर्तन होता है उसका कर्ता काल द्रव्य ही है । इसी वास्ते सूत्रमें लिखा है 'वत्तणा लक्खणो कालो' अर्थात् कालका लक्षण वर्तना ही है सो कालके परिवर्तन से ही जीव द्रव्य अजीव द्रव्यका पर्याय उत्पन्न हो जाता है और जीव द्रव्यका उपयोगरूप लक्षण है सो उपयोग ज्ञान दर्शनमें ही होता है अर्थात् जीव द्रव्यका लक्षण ज्ञान दर्शनमें उपयोगरूप है सो यह तो सामान्य प्रकारसे सर्व जीव द्रव्यमें यह लक्षण सतत विद्यन है। अपितु विशेष लक्षण यह है कि सुख वा दुःखका अनुभव
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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