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________________ ४ || श्री | तूजग जीवन अंतरजामी प्राग आधार पियारोजी || सब विधिलायक सँत सहायक भगत बछल वृध थारोजी ॥ ५ ॥ श्री ॥ अष्ट सिद्धि नव निद्धि को दाता तौ सम अवरन कोईजी ॥ बधै तेज सेवक कौ दिन २ जेथ तेथ जिम - होईजी ॥ श्री ॥ ६॥ अनंत ग्यान दर्शण संपति ले ईश भया अधिकारीजी || अविचल भक्ति विदेओ तो जाणू रिझवारीजी श्रीश्रागत||२||ढाल || आज सारा पासजी ने चालो बँदन जइए | प्रदेश || आज म्हारा संभव जिनकै हित चितसू गुणगासां ॥ मधुर २ खर राग अलापी गहरे साद गूँजा सां राज || आ ज म्हारा संभव जिनके हित चित गुण गा सां । नृप जितास्थ सैन्या राणी तासृत. सेवक थासा ॥ नवधा भक्त भाव सौ करने
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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