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हो ॥ प्रभु धरम दिवाकर जग गुरू केइ भव दुषद्कृतटालंबिनयचंदने आपोहोप्रभु निजगुण पतसासतीप्रभूदीनानाथदयाला७श्री।इति।१।। ढाल । कुविसन मारग माथैरे धिग २॥ऐ देशो श्री जिन अजित नमौ जयकारी तुम देवनको देवजी जय सत्रु राजा नै बिजिया राणा को आतम जात तुमेवजी ॥१॥श्री जिन अजित नमौ जयकारी । टेर ॥ दूजा देव अनेरा जग में ते मुझ दायन आवैजी॥ तहमन तह चित्त हमने एक तुहीज आधिक सुहाबैजी ॥श्री।२। सेव्या देव घणा भव २ मेंतो पिण गरज न साराजी ॥ अबके श्रीजिन राज मिल्यौ तू पू रण पर उपगारीजी श्री। त्रिभुवन में जस उज्वल तेरो फैल रहा जग जानेजी। बंदनीक पूजलीक सकल को आगम एम बखानजी ।।